Stop the time, Please. ( लघु कथा)


क्या समय को रोक पाना संभव है? क्या ऐसी कोई मशीन है जिससे समय को रोका जा सकता है? उसके साथ होना एक सुखद अनुभूति है ,मैं जब भी उसके साथ होता हूँ मैं बस इसी चीज़ की इच्छा कर रहा होता हूँ।

मैं एक चेयर पर बैठा हूँ और वह किचन में हमारे लिए कॉफ़ी बना रही है। उसकी पीठ मेरे ओर है,मैं उसे यहाँ से देख सकता हूँ। मैं ठीक इस क्षण समय को रोक देना चाहता हूँ।


“तुम्हें पता है समय किसी के लिए नहीं रुकता।”


कॉफ़ी फेटते हुए उसने मेरी तरफ मुड़ते हुए कहा और एक क्षण के लिए मैं स्तब्ध हो गया। ‘क्या अब वो मेरा सोचना भी सुन सकती है’ मैं सोचने लगा। 


“बताओं न क्या तुम मानते हो कि समय को रोका जा सकता है?” 


उसने मेरे सामने वाली चेयर पर बैठते हुए कहा वह दोनों पैर मोड़ कर कुर्सी पर बैठी हुई थी और अभी भी एक कप में कॉफ़ी फेंट रही थी। मैंने उसके सवाल का जवाब नहीं दिया बल्कि सामने मेज पर पड़ी एक किताब उठा ली यह ‘before the coffee gets cold’ मैंने शीर्षक पढा और उसके सवाल से बचने के लिए उसके पन्ने पलटने लगा। मेरा नाटक काम कर गया। उसने दोबारा सवाल रिपीट नहीं किया और मैंने राहत की सांस भरी। थोड़ी देर के लिए हम दोनों चुप रहे वह कॉफ़ी फेटती रही और मैं सामने बैठा किताब पढ़ने के बहाने उसको देखता रहा एक दो बार हमारी नजरे मिलती और वो बस मुस्कुरा देती। थोड़ी देर बाद वह उठी और किचन की तरफ बढ़ने लगी शायद कॉफ़ी अच्छी तरह से फिट चुकी थी। मैं उसे पीछे से जाता हुआ देख रहा था।

अचानक उसके कदम रुके और एक झटके से पीछे मुड़ते हुए पूछा।


“अच्छा अगर तुम समय रोक पाते तो तुम कौन सा वक़्त चुनते?” 


उसके इस सवाल ने मुझे थोड़ा असहज कर दिया। मैं चुप बैठा रहा और वह मेरे जवाब के इंतज़ार में खड़ी रही अब वो कॉफ़ी नहीं फेट रही थी वो बस खड़ी थी। हम बस एकटक एक दूसरे को देख रहे थे बिना कोई हरकत किए  शायद समय रुक चुका था। 


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मैं कॉफ़ी बनाने के बहाने किचन में हूँ। जब भी अकेली होती हूँ तो किसी के साथ कॉफ़ी पीने की इच्छा होती है,नहीं किसी के साथ नहीं बस उसके साथ जो चेयर पर बैठा है। वो मेरे ऊपर वाले फ़्लैट में रहता है और मैं कभी कभी उसे कॉफी के बहाने यहाँ बुला लेती हूँ। हम दोनों को फेंटी हुई कॉफी पसन्द है इसकी बात ही कुछ और होती है शायद ऐसा इसलिए भी क्योंकि इसमें समय का बेहद ही महत्वपूर्ण भूमिका है।  हाय!! कोई सिर्फ बैठे हुए इतना सुंदर कैसे लगा सकता है। वो औरों सा नहीं है वह सरल है, वह अपने साथ मुझे भी सहज बनाता है और उसकी यही बात मुझे आकर्षित करती है। हाँ बस बोलता कम है उसे सुनना ज्यादा पसंद है। मुझे उसके साथ एकदम सहज महसूस होता है,अच्छा लगता है जब वो आस पास होता है जैसे ठीक इस वक़्त वो मेरे पास है।

 

“क्या समय को रोका जा सकता है”


मैं अक्सर यह सोचती हूँ और इन दिनों मैं टाइम ट्रेवल्स की किताबें ही पढ़ रही हूँ।


अगर सच में ऐसा पॉसिबल है तो क्या इस समय को रोका जा सकता है जब वो ठीक मेरे सामने बैठा है मेरी ही घर में। क्या वो भी इस समय यही सोच रहा होगा। क्या मैं कुछ बोलूँ ? पर क्या बोलूँ? मैं भी पागल हूँ भला समय किसी के लिए रुकेगा ‘समय किसी के लिए नहीं रुकता।’ मैं उसे देखने के लिए मुड़ी और अचानक यह वाक्य मेरे मस्तिष्क से निकलकर एक जीता जागते वाक्य के रूप में उसके कानों तक जा पहुँचा। मुझे इंस्टेंट अपनी गलती का एहसास हुआ और मैंने मन ही मन खुद को इस बात के लिए डांटा भी। इस गलती को सुधारने के लिए मैंने अपना वाक्य ठीक किया ‘बताओं न क्या तुम मानते हो कि समय को रोका जा सकता है’ 

मैंने उसके समाने रखी चेयर पर बैठते हुए पूछा ताकि मैं उसके चेहरे के भाव पढ़ सकूँ। मैं उसे देखती रही परन्तु उसने कुछ नहीं कहा बल्कि सामने रखी एक जापानी राइटर की बुक उठा ली और उसमें मशरूफ़ हो गया मैं उसे देर तक देखती रही फिर कॉफी फ़िटने लगी। मैं कॉफी फिटते रही और वो किताब में उलझा रहा। अचानक मैंने उसकी तरफ देखा और उसे किताब के सहारे मुझे देखता हुआ पाया हम दोनों की आँखें मिली और दोनों ने एकदम से नजरे हटा ली। 

‘क्या यह मुझे ही देख रहा था?’, ‘क्या यह भी मुझे लेकर वही फील करता है जो मैं करती हूँ?’। ‘क्या इससे पूछूँ’ 

मैंने मन ही मन सोचा मगर फिर यह पूछने की हिम्मत नहीं हुई कहीं यह एक-तरफा न हो। एम्बरसिंग हो जाएगा एंड हाँ ऑकवर्ड भी। इसलिए पूछने की बजाए मैं उठी और किचन की तरफ जाने लगी ‘क्या समय को रोका जा सकता है?’ मेरे मन यह वाक्य घूमने लगा और पता नहीं क्या हुआ मुझे पर मैं मुड़ी और मेरे मुँह से एक सवाल निकल गया।


“अच्छा अगर तुम समय रोक पाते तो कौन सा वक़्त चुनते”






The End.




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