कविताओं का उगना।
तूम जो अपनी यादें छोड़ गई थी
इस कमरे में, इस आंगन में, मेरे जेहन में।
उनमे कविताएं उग आई हैं।
हर सुबह कविताओं की खनखनाहट
मेरे कानों में गूंजने लगती हैं,
जिसकी आवाज़ तुम्हारी चूड़ियों की खनक सी है।
मैं इस घर के जिस भी कोने में जाता हूँ,
मुझे कविताओं में लिपटी
तुम्हारे बालों की भीनी खुश्बू आने लगती है।
मैं उन्हें पकड़कर अपनी डायरी में लिख कर लेना चाहता हूं मगर जैसे ही मैं उन्हें कागज़ पे उतारने की कोशिश करता हूँ
वो कहीं गायब सी होने लगती है,धीरे धीरे उनकी खुशबू भी धुंधली पड़ने लगती है शायद उन्हें डायरी में कैद होना कतई पसन्द नहीं।
मैं लिखना बंद करता हूँ
और कविताएं वापस कमरे में अपनी भीनी महक लिए उगने लगती है।
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