अपना घर " कॉन्क्रीट का सपना"
खुद का एक घर लेना भी कितना कठिन हो सकता है यह सिर्फ़ वहीं जानता सकता है जिसके पास खुद का घर नही होता।
शहर में आने वाले आँखों में एक उम्मीद लेके आते है कि एक समय ऐसा जरूर आएगा कि वो भी इस शहर में अपने लिए एक छत खरीद पाएंगे जो सिर्फ उनकी होगी और जहाँ से उन्हें कोई भी रातों रात निकल जाने ले लिए नही कह पायेगा। सबसे बड़ी विडंबना तो यह भी है कि जो मज़दूर दूसरों के घरों को बनाने में अपनी ज़िंदगी निकाल देते है, वो खुद कभी खुद के लिए एक आशियाना बना पाने से वंचित रह जाते हैं।
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