मन की बात "काबिल"

शायद उस काबिल कभी नही बन पाउँ जहाँ मैं किसी के कंधे पर हाथ रखकर यह कह पाऊँ कि तुम चिंता मत करो मैं सब ठीक कर दूंगा, मैं सब संभाल लूंगा। यह कह देना कितना आसान है कि मैं सब संभाल लूंगा जबकि करना उससे कई ज्यादा कठिन। यह सब बाते वही बोल सकता है जो बहुत मजबूत हो जिसे सही व गलत में फर्क करना आता हो। जिसने बहुत दुनिया देखी हो। मैं अंदर से इतना मजबूत कभी नही रहा हूँ, न ही कभी था और न शायद कभी हो पाऊँ। सही और गलत को मापने का मापदंड क्या है इसका भी मुझे रति भर ज्ञान नहीं है। मैं कभी वो इंसान नही बन पाऊगा जो किसी दूसरे शिशु की भाँति परेशान व डरे व्यक्ति को यह वादा कर सके कि सब ठीक हो जाएगा। मेरे अंदर उतनी शक्ति, साहस नही है कि उसकी परेशानीयों का बोझ अपने कंधे पे लेकर उसे उस व्यक्ति दूर ले जा पाऊँ । मै तो बचपन से ही काफी डरपोक किस्म का इंसान रहा हूँ।

मुझे खुद परेशानीयों का हल ढूंढने में कई वक्त लग जाता है। पहले मेँ उससे भागने की कोशिश करता हूँ और अंत मैं खुद को उनमें उलझा पाता हूँ जैसे कोई बिल्ली ऊन के गोले से निकले उन्न में फंसी रहती है। असल में कुछ भी संभालने या ठीक करने लायक हूँ ही नही। मैं तो असल में वो व्यक्ति हूँ जो यह उम्मीद कर रहा है कि कोई उसके कंधे पर हाथ रखकर उसे यह भरोसा दिलाए को कि चिंता करने की जरूरत नही है, सब ठीक हो जाएगा।


-लेखक (आकाश छेत्री)

Comments

  1. बेहतरीन लेखन भाई ♥️🤌🏻 शायद हम सब उसी उम्मीद में ही हैं कि कहीं से कोई आएगा और कहेगा चिंता मत करो मैं हूँ, मैं संभाल लूंगा, तुम बस जीयो।

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  2. शुक्रिया भाई, बस भाई विचार आया और लिख दिया। हर किसी के जीवन में एक इंसान तो ऐसा होना ही चाहिए जिससे हम हर तरह की बात कर सके और जो हमें सब ठीक हो जाने का भरोसा दे सके।

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  3. bhai jaan you are capable to handle those things but you just a think to much. I'm always there for you if you ever needs me.🫰

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