एक विवाह.. ऐसा भी (कहानी)

कहानी शीर्षक: एक विवाह..ऐसा भी
लेखक: आकाश छेत्री
तस्वीर: pinterest

राहुल ने तस्वीर को बिना देखे ही न कह दिया और बड़बड़ाते हुए घर से बाहर निकला उसने रूखे स्वर में माँ को बाय कहा पिछले कुछ महीनों से उसकी माँ उसकी शादी के पीछे पड़ चुकी थीं और हर दिन किसी न किसी लड़की की तस्वीर उसके आगे रख देती। राहुल ने कई बार उनसे कहा था कि उसे विवाह में कोई रुचि नहीं है। उसे अभी अपना जीवन जीना है और ऐसे ही कोई भी लड़की से वो शादी कर ले इसके लिए वो कतई तैयार नहीं था। वो आज भी माँ से शादी के टॉपिक पर बहस करके आया था जिसकी वजह से वो ऑफिस के लिए लेट हो चुका था इसलिए न चाहते हुए भी उसे लोगों से भरी बस में चढ़ना पड़ा। जैसे तैसे भीड़ को चीरकर वह बस में चढ़ा। अचानक बस ने ब्रेक लगा दी जिसके कारण एक लड़की गिरने ही वाली थी मगर उसने लपक कर उसका हाथ पकड़कर उसे संभाल लिया और वो गिरने से बची। उसने सर झटक कर चहरे पर आए बालो को हटाया और जब राहुल ने उसका चेहरा देखा तो वो जैसे मंत्रमुग्ध हो गया। आसमानी रंग के सूट में वो बेहद ही खूबसूरत लग रही थी उसके माथे पर सिल्वर रंग की बिंदी चमक रही थी और ठीक उसी रंग की सिल्वर चूड़ियां उसने सिर्फ एक हाथ में डाल रखी थी जिसे अभी इस समय उसने पकड़ रखा था। उसका हाथ पकड़ते ही उसके भीतर एक सिरहन सी उठी ऐसा नही था कि उसने पहले किसी लड़की को नहीं छुआ था परंतु इस लड़की के छुवन में एक अलग बात थी। वह उसका हाथ पकड़े रहा।

"थैंक यू पर अब मैं नही गिरने वाली हूँ, तो आप मेरा हाथ छोड़ सकते हैं।"

"हां क्या आपने कुछ कहा?"

मेरा हाथ, उसने आँखों से हाथ की तरह इशारा करते हुए कहा। तब उसे अपनी गलती का एहसास हुआ। ओ पुत्तर अब तो छोड़ दे कुड़ी का हाथ किसी की आवाज़ आई। और उसने झटके से उसका हाथ छोड़ दिया। उसने नोटिस किया पूरी बस के लोग उन्हें ही देख रहे थे।

"सॉरी, वो मुझे ध्यान ही नही रहा। I am very sorry"

"नहीं कोई बात नहीं।" उसने कहा उसकी आँखों में शर्म थी।

जैसे ही बस एक स्टैंड पर तेज़ी से रुकी वह फिर गिरते गिरते बची इस बार उसने फिर उसका हाथ थाम लिया। लड़की के चेहरे पर हंसी फुट आयी।

"मुझे लगता है आपको यह हाथ पकड़े रहना पड़ेगा जब तक मेरा स्टैंड नही आ जाता" उसने हँसते हुए कहा और वे दोनों हँसने लगें। उसकी हँसी में एक बच्चे की खिलखिलाहट का भाव था ऐसी हँसी जिसे सुनते ही दूसरा व्यक्ति भी हँसने पे मजबूर हो जाए।

"हां लगता तो है" उसने कहा। लड़की कुछ नही बोली और उसे लगा कि शायद वह ज्यादा बोल गया। बस थोड़ी खाली हुई और उसने एक खाली सीट ढूंढ कर उसे वहाँ बैठने का इशारा किया वह उस सीट तक पहुँचे मगर बैठने से पहले उसने पूछा कि क्या वो बैठना चाहता है परंतु उसने ना में अपना सर हिला दिया। वह सीट पर बैठ गई और वह उसके सीट से सटकर खड़ा हो गया।

वह कभी उसे देखता तो कभी खुद को बस के ब्रेक के झटके से खुद को संभालता और वह लड़की उसे सीट को कसकर पकड़ने के लिए कहती। थोड़ी देर बाद बस एक स्टॉप पर रुकी और लड़की के बगल में बैठा आदमी उठ गया और नीचे उतर गया। लड़की ने राहुल को बगल वाली सीट पर बैठने को कहा। वह बैठ गया और दोनों थोड़ी देर चुपी में सफर करते रहे। राहुल बात करना चाहता था मगर वह बस में खड़े लोगों की सोच रहा था कि वे क्या सोचेंगे।

"बस मैं आज कुछ ज्यादा ही भीड़ है न।" अचानक लड़की बोल पड़ी।

हां, आज कुछ ज्यादा ही है। उसने कहा।

"आकृति बाय द वय" उसने अपना हाथ उसकी और बढ़ा दिया।

"रा..राहुल" उसने उसका हाथ मिलाते हुए कहा।

"राहुल, नाम तो सुना होगा" उसने झटके से कहा और दोनों हँसने लगे।

"तो कहाँ जा रहे हैं आप मिस्टर राहुल" उसने पूछा।

"Offfice" और आप।

"Office"

ओके, तो आप कहाँ जॉब करती ?

कनॉट प्लेस और आप

क्या इतेफाक है मैं भी वहीं जॉब करता हूँ।

अच्छा वाह क्या बात है मिस्टर, मिलो फिर कभी उसने इस बात को बड़े सामान्य तरीके से कह दी मगर वह थोड़ा सा असहज हो गया यह सुनकर। उसने उसके सवाल का जवाब नही दिया और चुप रहा।

क्या हुआ कोई प्रॉब्लम?

"नहीं, नहीं वो दरसल आपने अचानक पूछ लिया था न और दिल्ली की कोई लड़की इतनी जल्दी फ्रैंक हो जाये तो....."

"तो शक होता है" आकृति ने तपाक से कहा।

"मैं यह नहीं कहनाचाहता था" राहुल थोड़ा हिचकिचाते हुए बोला।

अरे, कोई नही I was just joking. आकृति ने कहा और राहुल ने एक छोटी मुस्कान उसे दे दी।

बस राजीव चौक रुकी और दोनों उतरे और थोड़ी देर चुप खड़े रहे। राहुल अपने बैग को पकड़े हुए इधर उधर देख रहा था उसे आकृति से मिलकर बहुत अच्छा लगा था उसकी कई महिला दोस्त रही थी मगर फिर भी 27 साल के उम्र में भी वो सिंगल ही था क्योंकि उसे आज तक ऐसी लड़की नहीं मिली थी जिसे देखकर सच में कुछ फील हो। उसे आकृति का नम्बर लेना था ताकि वो उससे और बात कर सके परन्तु उसे समझ नही आ रहा था कि वो उससे नम्बर कैसे मांगे।

वह इसी कश्मकश में अंदर ही अंदर बेचैन हो रहा था।

"अच्छा, तो मैं चलती हूँ मिस्टर फिर कभी मिलेंगे" उसने मजाकिया अंदाज में कहा और जाने लगी।

"कैसे" राहुल अचानक से पीछे से बोल पड़ा।

"क्या, कुछ कहा तुमने" आकृति ने पूछा।

"वो.... वो दरसल मैं कह रहा था कि कैसे मिलेंगे, मेरा....मतलब, मेरा मतलब। कॉन्टैक्ट कैसे करेंगे पता नही फिर बस में मिले भी या नहीं।" उसने जैसे तैसे अपनी बात ख़त्म की और उसे सुनकर आकृति हल्के से हंसी और अपना सर हिलाकर अपने पर्स में से एक पर्ची निकाल कर उसपे कुछ लिखने लगी।

"ये लो, this is my number, give me a call when you are free." उसने कहा और पर्ची को राहुल की तरफ बढ़ा दिया। राहुल ने पर्ची ली और मुस्कुराने लगा उसके गाल लाल हो रहे थे।

"ठीक है, मैं तुम्हें कॉल कर लूंगा वैसे तुम कब फ्री रहती हो।" वो मैं नही चाहता कि तुम्हें डिस्टर्ब करूँ जैसे ही यह वाक्य उसके मुँह से निकला उसे खुद पर गुस्सा आने लगा यह भी कोई सवाल हुआ। अरे लड़की ने सामने से नम्बर दिया है तो वो इतना औपचारिकता क्यों दिखा रहा है। आकृति ने कुछ नही कहा बस एक मुस्कान देकर चली गई, राहुल का मन तो किया कि उसका पीछा करे उसे थोड़ी देर और देखने का सुख प्राप्त करे लेकिन वो खुद ऑफिस के लिए लेट हो रहा था सो वह आकृति की उल्टी दिशा में आगे बढ़ गया।

अगले दिन वह बस में चढ़ा और बस में खड़े लोगों की भीड़ में आकृति को ढूँढने लगा। अचानक उसे भीड़ के बीच से एक सुंदर हिलता हुआ हाथ दिखा उसने आगे बढ़कर देखा तो आकृति हाथ हवा में हिलाकर उसे बुला रही थी। राहुल भीड़ को कोहनी से चीरता हुआ उसके पास पहुँचा तो देखा आकृति ने दो सीट उन दोनों के लिए बचा कर रखीं हैं।

"अरे, आज तुमने मेरे लिए सीट रखी है?"

"नहीं, वो भाईसाहब खड़े हैं न, उनके लिए है यह सीट"

"तुम भी न आकृति"

"मैं भी न क्या"

"तुम बहुत फनी हो in a cute way"

"पर तुम बिल्कुल भी फनी नही हो" उसने कहा और दोनों हँसने लगे। राहुल ने नोटिस किया कि आकृति ने आज एकदम हल्के गुलाबी रंग का सूट पहन रखा था जो उसपे खिल रहा था। उसकी नज़रे उसके दाहिने हाथ की और गई उसने आज भी सिर्फ एक ही हाथ में वही सिल्वर चूड़ी पहनी हुई थी। राहुल जैसे उसकी खूबसूरती का कायल हो चुका था। आकृति बस से बाहर देख रही थी और राहुल उसको देख रहा था।

"तो तुमने मुझे फोन क्यों नहीं किया"

"अरे, वो......मैं"

"बस रहने दो, मैंने तुम्हें इस उम्मीद में नम्बर दिया था कि तुम मुझे कॉल करोगे पर तुम तो"

"सॉरी... वो मैंने सोचा कि इतनी जल्दी कॉल करना सही रहेगा भी या नहीं"

"तुम सोचते बहुत हो मिस्टर" उसने कहा और वापस खिड़की से बाहर देखने लगी। राहुल के दिमाग में उसका एक वाक्य अटक गया कि वह उसके कॉल की उम्मीद कर रही थी और वह सोचने में लगा रह गया। धत, क्या पागल आदमी है वो। उसने उससे इस बारे में पूछने की सोची।

"वैसे...वो, मैं वो.. तुम उम्मीद कर रही थी कि मैं कॉल करूँगा" उसने हिचकिचाते हुए पूछा लेकिन वह उसकी तरफ मुडकर सिर्फ मुस्कुराई। पूरे बस में राहुल यही सोचता रहा कि क्या उसे आकृति को बाहर मिलने के लिए कहना चाहिए? कहीं कुछ अजीब तो नही लगेगा। अरे यार, राहुल तू सच में पागल है इतना कौन सोचता है। इतनी फ्रैंक है तुझसे तो पूछ ही ले। उसने खुद से मन में कहा।

स्टॉप आ गया और वे दोनों बस से उतरे। आकृति ने उसे बाय कहा और अपनी ऑफिस की तरफ बढ़ने लगी। राहुल ने उसे बाहर चलने के लिए पूछने का मन बनाया बस में तो वो रोज़ ही मिलते थे और लगभग एक डेढ़ घन्टे तक बात करते हुए पर उसे अब उसके साथ किसी और जगह मिलना था इसलिए उसने हिम्मत करके कहा।

"आकृति" उसने कहा और आकृति मुड़ी।

"क्या हम आज बाहर मिल सकते हैं?"

"Date के लिए पूछ रहे हो"

उसने तपाक से कहा और राहुल थोड़ा असहज हो गया इस जवाब की उम्मीद उसने नहीं की थी । उसने तो सोचा था कि वो या तो हाँ कहेगी या न।

"अरे नहीं वो तो मैं बस कैज़ुअली पूछ रहा था" राहुल कहते कहते हड़बड़ाने लगा।

"अरे रिलैक्स, मैं मजाक कर रही थी" आकृति ने कहा।

"अच्छा, यार तुम तो डरा देती हो" राहुल ने कहा।

"तो कब मिले बताओ" राहुल ने फिर पूछा।

"तीन बजे मिलते है। कॉफी पीते हुए हौज ख़ास वाले पार्क में सनसेट देखने चलेंगे" आकृति ने सुझाया जिसपे राहुल ने भी हामी भर ली।

दोनों हौज ख़ास पार्क में टहल रहे थे, आस-पास लोगों की भीड़ थी और राहुल एकांत तलाश रहा था। आखिरकार उन्हें एक ऐसा स्पॉट मिल ही गया जहाँ सिर्फ एक दो लोग ही बैठें थे। दोनों जाकर बैठे, सामने शांत नदी थी और उसमें कुछ बत्तख तैर रहे थे।

"तो क्या है तुम्हारी स्टोरी" आकृति ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा।

"मतलब"

"मतलब, क्या तुम्हारी कोई गर्लफ्रैंड है।" आकृति ने झट से पूछा जिसपे राहुल थोड़ा झेंप गया।

"गर्लफ्रैंड होती तो तुम्हारे साथ यहाँ शांति में बैठ पाता अभी बीस फोन आ जाते।" उसने कहा।

"ओह! ऐसा क्या"

"हाँ, ऐसा ही है"

"तो कभी कोई पसन्द नही आई"

"पसंद आई पर बात कुछ जमी नहीं, वो लड़की कभी मिली ही नहीं जो मेरे जैसी हो"

"अच्छा और तुम्हारा टाइप क्या है" आकृति हल्का उसके तरफ मुड़ी जिसपे राहुल ने भी अपना शरीर उसकी तरफ घुमा लिया।

"मेरा कोई टाइप नहीं है। मैं बस चाहता हूँ कि लड़की थोड़ी सेंसिबल हो, ब्रॉड थिंकिंग,आत्म निर्भर हो और हां साहित्य में रुचि रखती हो।"

"अच्छा और तुम्हारे हिसाब से यह टाइप नहीं हुआ" आकृति ने राहुल को छेड़ते हुए पूछा।

"अरे नहीं यह तो सिंपल सी चीज़े हैं।"

"अच्छा, आकृति तुम्हारा टाइप क्या है।"

"तुम, मुझे तो तुम्हारे टाइप का कोई लड़का चाहिए" आकृति ने अपना एक हाथ राहुल के हाथ पर रखकर, उसकी आँखों में देखकर कहा।

राहुल थोड़ा झेंप गया। उसने कभी सपने ने में भी नहीं सोचा था कि आकृति ऐसा कुछ कहेगी। वो चुप था उसे समझ नहीं आ रहा था कि उसे अगला वाक्य क्या बोलना चाहिए वह सोच में पड़ गया। उसके माथे पे पसीने की बूंदे आ गई हालांकि अंदर से वह खुश भी हो रहा था यह सोचकर कि आकृति उसके बारे में ऐसा सोचती है।राहुल कुछ बोल पाता कि आकृति अचानक ज़ोर ज़ोर से हँसने लगी आस पास जो एक आध लोग मौजूद थे उनकी तरफ देखने लगे और राहुल थोड़ा असहज महसूस करने लगा।

"अरे, यार मैं मज़ाक कर रही थी। तुम तो सीरियस हो गए।" उसने कहा और फिर से हँसने लगी। राहुल की खुशी दुःख में परिवर्तित हो चुकी थी। उसे आकृति के इस बचपने पर गुस्सा भी आ रहा था, यह शायद इसलिए भी था क्योंकि लोग उन्हें घूर रहे थे।

"यह क्या था, ऐसा कोई करता है क्या?"

"क्या हुआ, मज़ाक ही तो था"

"मुझे ऐसा मजाक बिल्कुल भी नहीं पसंद ओके" राहुल ने चिढ़कर कहा और मुँह दूसरी तरफ फेर लिया।

"अच्छा बाबा सॉरी, प्लीज नाराज मत होओ अब नहीं करूंगी ऐसा मजाक।"

उसने बेहद ही लाड़ भरी आवाज कहा। जब राहुल उसकी तरफ मुड़ा तो खुद को हँसने से रोक नहीं पाया उसने पाया कि आकृति ने दोनों कान पकड़े हुए हैं वो कितनी प्यारी और मासूम लग रही है। वह सोचने लगा। उसने अपने दोनों हाथों से आकृति के दोनों हाथ पकड़े और उसके कानों से हटाकर अपने हाथों में ले लिए। पार्क में अब लोग कम हो चुके थे। शाम के सूरज का नारंगी रंग से दोनों घिरे हुए थे, पूरा आकाश नारंगी रंग में नहा चुका था। स्पर्श की ऊर्जा दोनों को एक दूसरे के करीब ला रही थी, दोनों के कंधे एक दूसरे की तरफ झुक रहे थे, राहुल का पूरा बदन गर्म को रहा था,उनके चेहरे एक दूसरे के एकदम करीब थे और दोनों के होंठ आपस में मिलने के लिए तैयार थे कि तभी सिक्युरिटी गॉर्ड ने आके उनको रोक लिया।

"क्या सर, फैमिली स्पॉट है। यह सब करना है तो मैडम को होटेल ले जाओ न।" गॉर्ड ने कहा जिसपे आकृति ने तो कुछ नहीं कहा और राहुल खुद को रोक न पाया।

"हेलो, भईया तमीज से"

"अरे, विजिटिंग टाइम खत्म हो चुका है। पूरा पार्क खाली हो गया है बस आप ही बचे हो।"

"हाँ तो जा रहे हैं भाई" राहुल खीजते हुए उठा, साथ ही आकृति भी उठी और कुछ ही देर में दोनों ऑटो में बैठे घर की तरफ जाने लगे। दोनों थोड़ी देर पहले ही एक दूसरे के इतने करीब थे। वह उससे बस चूमने ही वाला था कितना अलग है यह एहसास, उसका शरीर अभी भी गर्म था आकृति का स्पर्श की ऊर्जा उसके पूरे बदन में दौड़ रही थी। राहुल ऑटो में बैठा यही सब सोच रहा था। वह आज तक किसी लड़की के इतने करीब नहीं गया था न स्कूल में, न कॉलेज के दिनों में और न ही वो कभी किसी भी तरह के रोमांटिक रिलेशनशिप में रहाथा। राहुल ने चुपी तोड़ते हुए उससे पूछा कि वह कहाँ रहती है जिसपे आकृति ने साकेत बताया और राहुल ने खुशी से कहा अरे मैं भी तो वहीं रहता हूँ। आकृति के घर के सामने आकर ऑटो रुकी और आकृति बिना कुछ बोले ऑटो से उतर गई। मामला थोड़ा अजीब हो गया था और राहुल उस अजीब मामले को अपने साथ ढो कर नहीं ले जाना चाहता था वो तो उस पल को अपने साथ लेकर जाना चाहता था जब वो दोनों किस करने ही वाले थे। आकृति अपने घर की और बढ़ रही थी कि तभी राहुल ने उसे पीछे से आवाज़ लगाई।

आकृति! सुनो। उसने कहा जिसपे आकृति पीछे मुड़ गई।

यार, सॉरी उस गॉर्ड ने जो कहा उसके लिए। पागल था वो, उसने देखा आकृति चुप थी उसके चेहरे पर किसी भी तरह के भाव नहीं थे। अब हम सिर्फ रेस्टूरेंट में मिलेंगे जहाँ ऐसे फालतू लोग नहीं रहेंगे, तुम ज्यादा मत सोचो... वह कह ही रह था कि आकृति ने उसे गले लगा लिया। उसके गले लगाते ही राहुल को ऐसा महसूस हुआ कि मानो उसे पूरे शरीर में बिजली दौड़ गई हो। आकृति की छाती उसके सीने से चिपकी हुई थी और उसका चेहरा उसके बालों में घुसा हुआ था। आज से पहले उसने किसी लड़की को गले नहीं लगाया था उसके रौंगटे खड़े होने लगे। आकृति के परफ्यूम के साथ मिले उसके शरीर की गंध राहुल के नाक के छिद्रों से उसके मस्तिष्क तक पहुँच रहे थे। दोनों बिना कुछ बोले युहीं एक दूसरे के आलिंगन में थे। आकृति शांत थी और राहुल आकृति के शरीर को खुद में मिलता हुआ पा रहा था। थोड़ी देर बाद आकृति राहुल से अलग हुई और राहुल को ऐसा लगा जैसे आकृति नहीं बल्कि उसके ही शरीर का कोई अंग उससे अलग हो रहा हो।

मैं चलती हूँ। उसने बहुत ही मद्धम स्वर में कहा और राहुल के कुछ बोलने से पहले ही चली गयी और राहुल बस उसे देखता रह गया। पूरे रास्ते वो ऑटो में बैठा आकृति के बारे में सोचता ही रहा मगर घर पहुँच कर भी अपने बेड पे लेटकर भी उसे चैन नहीं मिला वह लगातार आकृति के छुवन को अपने बदन पर महसूस कर सकता था। उसे उसकी बहुत याद आ रही थीं उसने सोचा कि उसे फोन कर ले मगर उसे यह सही नहीं लगा। बगल की शेल्फ से किताब निकाल कर उसने पढ़ने की कोशिश भी की परंतु वह उसमें भी ध्यान लगाने में असफल रहा। वह पूरी रात आकृति को याद करते हुए करवटे बदलता रहा। उसने पहली बार किसी लड़की के लिए ऐसा महसूस किया था वो आकृति के प्रेम में था और उसने अब और इंतज़ार न करने का मन बनाया उसने सोचा कि कल उसे वो अपने दिल की बात कह देगा।

अगली सुबह फिर माँ से शादी के विषय पर बहस करने के बजाए बात करके वो ऑफिस के लिए निकला और इस बार उसने कहा कि वह शादी जल्द करेगा पर अपनी पसंद की लड़की के साथ जिसपे उसकी माँ पहले तो आश्चर्यचकित थी परंतु बाद में उसने खुशी-खुशी उसके लिए हाँ कह दी।

वह जल्दी से बस स्टॉप पहुँचा, वो आकृति से मिलने के चक्कर में आज दस मिनट पहले ही वहाँ पहुँच गया था और अब उसे यह दस मिनट दस घन्टे के समान प्रतीत हो रहे थे। उसके ऑफिस के रुट वाली बस आई हर वो उसमें चढ़ गया। बस में घुसते ही वो आकृति को ढूंढने लगा आज बस खाली थी तो उसे आकृति को देखने में कोई समस्या नहीं होनी चाहिए थी परंतु पूरी बस में देखने पर भी उसे आकृति कहीं नजर न आई। वह थोड़ा सा विचलित हो उठा वो हर सीट पर जाकर देखने लगा। तभी पगड़ी पहने सरदार जी जो रोज़ उनके साथ उसी बस में जाते थे उन्होंने कहा 'ओ पुत्र जी, वो कुड़ी न आई आज, मैं उसके नाल ही चढ़ता हूं तुम्हारे एक स्टैंड से पीछे वाले स्टैंड से' यह सुनते ही राहुल के आंखों में जो चमक कुछ देर पहले थी वो चली गई। उसने एक सीट पकड़ ली और आकृति को फोन लगाया कई घण्टियों के बावजूद दूसरी तरफ से कोई जवाब नहीं आया। कहीं उसकी तबियत तो खराब नहीं वो मन ही मन सोचने लगा।

अगले दिन उसे फिर आकृति बस में नहीं दिखी और न ही उसके अगले दिन और न ही उसके अगले दिन। करीब एक हफ्ते बीत गए परंतु आकृति की कोई खबर नहीं थी न ही वो ऑफिस जा रही थी और न ही अपना फोन उठा रही थी।

राहुल ने पिछले कुछ दिनों से ऑफिस जाना बंद कर दिया था कुछ दिन वह ऑफिस के लिए निकला परंतु ऑफिस के बजाए कभी कनॉट प्लेस तो कभी हौज़ खास के पार्क में समय बिता कर घर लौट आता। खान मार्किट के कैफ़े Perch cafe में जो आकृति का पसंदीदा कैफ़े था वो वहाँ घण्टो बैठा करता था इस उम्मीद में की शायद वहाँ उसे आकृति मिल जाए। उसे बस आकृति से मिलना था उसने कभी नहीं सोचा था कि किसी लड़की के लिए वो कभी इतना इंतज़ार करेगा पर अब वो कर रहा था इंतज़ार।

शाम के 5 बजे होंगे, राहुल औंधे मुंह अपने बिस्तर पर पड़ा हुआ था कि तभी उसका फोन बजा। उसने देखा तो आकृति का नाम स्क्रीन पर फ़्लैश हो रहा था और सच में उस समय फोन की स्क्रीन से ज्यादा चमक उसके चेहरे पर आ गई।

हेलो, उसने कहा और आकृति की आवाज़ की प्रतीक्षा करने लगा। दूसरी तरफ से थोड़ी देर के बाद आवाज़ आई और राहुल को आवाज़ पहचाने में कोई दिक्कत नहीं आई।

"आकृति यार कहाँ हो तुम, पता है मैंने तुम्हें कितने कॉल किया, तुम तो गायब ही हो गयी यार।"

"सुनो राहुल क्या हम मिल सकते हैं? आकृति ने उसे बीच में काटते हुए कहा।"

"हाँ, क्यों नहीं बोलो कब मिलना है"

"अभी, इसी वक़्त सेम कैफ़े" उसने कहा जिसपे राहुल ने उसे कहा कि उसके पहुँचने से पहले वो वहाँ पहुँच जाएगा।

राहुल को कैफ़े में बैठे हुए क़रीब 20 मिनट हुए थे कि तभी कैफ़े का दरवाजा खुला और आकृति अंदर चलकर आयी। उसने सफेद कलर का कुर्ता और नीचे ब्लू कलर की जीन्स पहनी हुई थी और उल्टे हाथ पे वही सिल्वर चूड़ियां थी। जैसे ही वो उसके टेबल के पास आई तो राहुल ने खड़े होकर उसको हाय कहकर गले लगा लिया। परंतु आज कुछ अजीब हुआ उसके आलिंगन में तो आकृति थी मगर आकृति के बाहों में वह नहीं था। वह तो बस चुपचाप सीधे खड़ी थी उसके दोनों हाथ नीचे थे। राहुल को मामला गड़बड़ लगने लगा। उसने आकृति को छोड़ा और उसे कुर्सी पर बैठने को कहा। राहुल उसे देखकर खुश था मगर आकृति की आँखों में एक खालीपन था और न ही उसके हाव भाव देखकर लग रहा था कि वह खुश है।

"क्या हुआ आकृति? सब कुछ ठीक है उसने कहा जिसपे आकृति ने उसकी तरफ देखा मगर कुछ कहा नहीं।"

"ऐसे क्या चुप होकर देख रही हो, बताओगी क्या हुआ? उसने फिर पूछा।"

"मेरी शादी तय हो गयी है राहुल। उसने बेहद ही उदास और मद्धम स्वर में कहा।"

ज्यों ही आकृति के शब्द राहुल के कानों में पड़े वह स्तब्ध सा हो गया उससे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या कहे। उसके दिमाग में बुद्ध की कही बात घूमने लगी जिसे उसने की किताब में पढ़ा था जिसमें लिखा था कि इंसान की सबसे बड़ी भूल यह कि उससे लगता है उसके पास समय है। तो क्या यही भूल राहुल से भी हो चुकी थी, क्या उसे बहुत पहले ही आकृति को अपनी भावनाएं व्यक्त कर देनी चाहिए थी। क्या अब वो इस बारे में कुछ कर सकता है वो चुप बैठा बस यही सोच रहा था। उसकी चुपी देखते हुए आकृति ने दोबारा बोलना शुरू किया।

"अगले महीने मेरी शादी की तारीख तय हो गयी है। अगले हफ्ते सगाई है। लड़का NRI है उसे जल्दी विदेश लौटना है तो इसलिए सब कुछ जल्दी हो रहा है। मैं बच्ची नहीं हूँ मुझे पता है तुम मेरे लिए कैसा फील करते हो और मैं यहाँ तुम्हें यही कहने आई हूँ कि अब मेरा इंतज़ार मत करना मैंने ऑफिस जाना भी छोड़ दिया सो तुम बस में मुझे मत ढूँढना।" उसकी बाते सुनते हुए राहुल की आंखें गीली हो चुकी थी परंतु वह कुछ बोल नहीं रह था उसे चुप देख आकृति बिना कुछ बोले उठी और जाने लगी।

क्या तुम मुझसे प्यार करती हो ? राहुल ने अचानक यह वाक्य अपने मुंह से निकाला जिसपे आकृति के कदम रुक गए और वह उसकी तरफ मुड़ी।

बताओ आकृति, क्या तुम भी मुझसे प्यार करती हो?

अब इन बातों का कोई फायदा नहीं राहुल।

फायदा है आकृति तुम कहो एक बार की तुम भी मुझसे प्यार करती हो फिर देखों मैं कैसे चीज़े बदल देता हूँ।

तुम ऐसा कुछ नहीं करोगे राहुल। मैं नहीं चाहती कि तुम्हारे और मेरी फैमिली का नाम ख़राब हो वैसे भी मेरे पापा बहुत ही सख़्त किस्म के हैं। मैं यह कभी नहीं चाहूँगी की तुम्हें कुछ हो जाए इसलिए प्लीज् दूर रहो इन सब से।

दूर रहूँ और तुम्हें जाने दूँ।

तो क्या हुआ, वैसे भी तुम्हें कभी शादी में कोई रुचि नहीं थी। और न ही लड़कियों में फिर मैं कोई ख़ास नहीं हूँ बाकी लड़कियों की तरह ही हूँ जिसे एक दिन शादी करनी है जिसे खुद का परिवार चाहिए। मैं तुम्हारे लिए सही नहीं हूँ।

यह तुम तय नहीं करोगी। हाँ पहले मुझे चिढ़ थी शादी से लेकिन तुमसे मिलने के बाद मैं वैसा नहीं रहा हूँ जैसा पहले था और तुम ख़ास हो मेरे लिए।

अब मुझे जाना होगा घर पर झूठ बोलकर आई थी। अच्छा राहुल बाय

अरे... तुम कहाँ जा रही हो? मुझे छोड़कर तुम नहीं जा सकती। आय लव यू। राहुल कहने लगा लेकिन आकृति ने उसे अनसुना कर दिया और वहाँ से चली गई।

शाम को जब पूरी दिल्ली में भटकने के बाद वह घर आया तो उसे डबल शॉक मिला उसकी मम्मी ने बताया कि उन्होंने उसके लिए एक लड़की देख रखी है जो उन्हें बहुत पसंद है लड़की के पिता उसके पिताजी के ख़ास दोस्त है जिसके कारण उन्होंने वादा किया है कि वो एक बार बच्चों को मिलवा देंगे इसलिए अगले हफ़्ते उन्हें उसे देखने जाना है और उसे भी साथ चलना है। राहुल यह सब सुनकर बहुत गुस्सा हुआ जैसे वो अक्सर शादी की बात पे हो जाया करता था। उसे तो हमेशा से ही चिढ़ रहा था किसी भी बंधन में बंधने से। उसकी माँ ने उससे कहा कि अगर वो कल नहीं गया तो उसके पापा की इज्ज़त खराब हो जाएगा, क्या वो यही चाहता है कि उसके पिता ज़लील हो। राहुल को पता था कि यह माँ का इमोशनल तरीका है उसे मनाने का उसने सोचा कि वह मना कर दे परंतु फिर बात पापा की थी सो उसने हाँ कह दिया। दिन बीतते गए और राहुल चुप चाप ऑफिस जाता और घर आते ही अपने कमरे में एक बार घुसकर निकलता तक नहीं था। जैसे ही अगला हफ्ते का वो दिन आया जब उन्हें लड़की देखने जाना था तो उन्होंने नीचे से राहुल को आवाज़ लगाई ताज्जुब की बात है वो एक ही आवाज़ में तैयार होकर नीचे आ गया।

जब वो लड़की के घर पहुँचा तो उसने देखा कि पूरा घर सजा हुआ है जैसे सिर्फ मिलना न होकर सगाई ही होने वाली हो। उसने पहले ही मन बना रखा था कि वो आकृति के अलावा किसी और से शादी नहीं करेगा और आज लड़की से अकेले में मिलकर उसे कह देगा कि वह किसी और से प्यार करता है तो वो उसे रिजेक्ट कर दे ताकि यह रिश्ता भी न हो और उसके पिता का मान भी रह जाए। वह दरवाजे पे पहुँचे तो उनका स्वागत हुआ राहुल ने देखा लड़की के पिता और माता काफी जवान दिखते है और लड़की की एक छोटी बहन है करीब 16-17 की होगी वो एक पल के लिए चौंक गया क्योंकि उस लड़की की शक़्ल लगभग आकृति से मिल रही थी। राहुल को लग रहा था जैसे छोटी उम्र की आकृति ही उसके सामने खड़ी हो परंतु फिर उसे लगा कि आकृति से वो इतना प्रेम करने लगा है कि उसे उसका चेहरा हर चेहरे में दिख रहा है। वे अंदर दाखिल हुए और सोफे पे बैठें, राहुल ने देखा तो उसे वो लड़की कहीं नज़र नहीं आ रही थी जिसे वो देखने आया था, आया नहीं था बल्कि जबर्दस्ती लाया गया था। बातचीत शुरू होने लगी, लड़की के मम्मी पापा ने उससे सामान्य से सवाल पूछे और राहुल बेमन सा उनके जवाब देने शुरू किया। उसे इन सवालों में कोई दिलचस्पी नहीं थी असल में उसे यहाँ होना भी नहीं तो वो तो इस वक़्त आकृति के साथ हौज़ ख़ास के पार्क में लेटे रहना चाहता था। वह सोच रहा था कि जल्दी से वो लड़की से मिले और लड़की से कहे कि वो इस रिश्ते के लिए मना करे ताकि वह यहाँ से विदा ले सके। वो इतना बेसब्र था यहाँ से जाने के लिए की वो लड़की को बुलवाने के लिए कहने ही वाला था कि तब उसके पिता ने लड़की के पिता से कहा कि अरे बेटी को तो बुलवाई। बेटी, अरे अभी से बेटी खैर जाने दो जल्दी से को आए और मैं यहाँ से निकलूँ वो यह सोच ही रहा था कि लड़की की बहन लड़की को लेकर बाहर आई जिसने हाथ में चाय की ट्रे पकड़ी हुए है। उसने घुँघट से अपना मुंह छुपा रखा था जिसके कारण राहुल उसका चेहरा देख नहीं पा रहा था। आज के ज़माने में कौन घूंघट रखता है उसने फुसफुसाकर अपनी माँ से कहा। जिसपे उसकी माँ ने उसे चुप रहने के लिए कहा। उसने आकर सबको चाय दी राहुल ने भी चाय ली परंतु उसे बिना पिए टेबल पर रख दी। चाय तो जबरदस्त बनाई है बेटा राहुल के पापा ने कहा जिसपे राहुल ने भी सोचा वह भी चाय पी ही ले जैसी उसने चाय का पहला घूँट पिया तो वह चाय के स्वाद से प्रभावित हो गया। कहो कैसी लगी जाए राहुल बेटा लड़की के पापा ने पूछा और राहुल के मुंह से भी निकल गया कि चाय जबरदस्त है। राहुल के मुख से यह शब्द निकलते ही उसे लगा कि उसे यह नही कहना चाहिए था क्योंकि वह यहाँ रिश्ता तोड़ने आया था न कि तारीफ कर रिश्ते को पक्का करने। देखा बहू की हाथ का जादू चल ही गया राहुल की माँ ने हँसते हुए कहा और लगभग सभी लोग हँसने लगे सिर्फ राहुल था जो मातम में आया लग रहा था उसके चेहरे पर मुस्कान तक नही थी। उसे लगा मामला बिगड़ रहा है उसके कुछ बोलना ही होगा वरना उसके हाथ से यह मौका निकल जाएगा। मुझे इनसे अकेले में बात करनी है राहुल ने तपाक से सबकी बात काटते हुए कहा और सबकी हँसी रुक गयी और सब राहुल की तरफ ताकने लगे। राहुल भी थोड़ा असहज हो गया। अरे बिल्कुल भई आजकल तो लड़का लड़की का अकेले में बात करना ही ठीक है। लड़की के पिता ने हँसते हए कहा। थोड़ी देर बाद दोनों एक कमरे में थे जो लग रहा था जैसे लड़की की छोटी बहन का कमरा हो। हर जगह BTS k-pop band के पोस्टर चिपके हुए थे। लड़की चुप उसके सामने बैठी थी राहुल उससे बात करना चाहता था तभी उसे ध्यान आया कि उसने अभी तक उस लड़की का नाम भी नही। पूछा था।

सुनिए, आपका नाम जान सकता हूँ मैं?

आरती। लड़की ने एकदम मद्धम स्वर में कहा, राहुल को उसकी आवाज़ जानी पहचानी सी लगी परन्तु उसने ज्यादा ध्यान नहीं दिया।

देखो, आरती। मैं यह रिश्ता नहीं कर सकता हूँ क्योंकि मैं किसी और से प्यार करता हूँ। हाँ एक वक्त था जब मैं शादी के खिलाफ था पर अब मेरा विचार बदल गया है इसे लेकर अगर सही साथी हो तो शादी बुरी चीज भी नहीं है। राहुल ने एक सांस में अपनी बात कह दी और उसे लगा जैसे उसके छाती से कोई बोझ हट गया हो।

सच में अब आपको शादी से कोई एतराज नहीं तो चलो कर लेते हैं शादी। लड़की ने कहा और अपना घूंघट उठा दिया। घूंघट के उठते ही लड़की का चेहरा ठीक राहुल के सामने था जिसे देखकर राहुल दंग रह गया। वह लड़की कोई और नहीं बल्कि खुद आकृति थी जो अभी उसकी तरफ देखे मुस्कुरा रही थी। उसे कुछ समझ में नही आया इसी बीच आकृति ने उसे गले लगा लिया और कहने लगी बहुत पापड़ बेले यार तुम्हें पाने के लिए। राहुल कुछ समझ नहीं पाया जब उसने आकृति से इस सारे ड्रामे के पीछे की कहानी जानी तो वह और भी ज्यादा चौंक गया।

देखो राहुल तुम्हारा रिश्ता पहले ही मेरे घर आ गया था पंडित जी ने जब तुम्हारी तस्वीर दिखाई तो सच बताऊँ तो मुझे तुम तभी पसंद आ गए थे और मैंने तभी अपनी मम्मी को हाँ बोलने के लिए कह दिया था। मैं तुम्हारे रिप्लाई के लिए बहुत ही ज्यादा उत्साहित थी परंतु जो खबर तुम्हारे घर से आई उसने मेरा दिल तोड़ दिया था। माँ और पंडित जी ने मुझे बताया की तुमने बिना मेरी तस्वीर देखे ही इस विवाह के लिए मना कर दिया है। तुम्हारी मम्मी का कहना था कि तुम्हें अभी शादी नही। करनी और तुम्हें शादी न करने की ठानी है। सच बताऊँ तो मुझे ऐसा लग था कि शायद तुम्हारा यह फैसला हम दोनों को कभी एक नहीं करेगा परंतु फिर मेरे दिमाग में एक आईडिया आया कि क्यों न इस अरेंज मैरिज की नींव लव मैरिज पर रखी जाए ताकि तुमको मुझसे प्यार हो जाये और तुम्हारा विचार विवाह को लेकर भी बदले। इसलिए मैं जानबूझकर तुमसे बस में बार बार मिलती रही और ऐसा नाटक करती रही जैसे मैंने तुम्हें पहली बार देखा है जब तुम मुझसे प्यार करने लगे तो मुझे सबसे मुश्किल काम करना पड़ा और वो था तुमसे दूरी बनाने का काम और बाकी तो तुम जानते ही हो आकृति ने पूरी कहानी राहुल को बताई तब तक सब लोग उनके कमरे में आ गए थे। मतलब, तुम्हारी शादी किसी और से नही हो रही उसने आकृति से पूछा जिसपे आकृति ने न में सर हिला दिया। मतलब आप सब लोग भी इसमें मिले हुए थे उसने कहा और सब हँसने लगे।

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