कल्पना (Figment of Imagination)

 मैं और तुम कैफ़े में बैठे थे, हमारी कॉफी उसके पीने के इंतज़ार में ठंडी हो रही थी। तुम टेबल पे रखें फ्लावर पॉट की स्केच बनाने में व्यस्त थी और मैं तुम्हें देखने में। तुम्हारी पेंसिल शीट पर तेज़ी से चल रही थी और तुम हक़ीक़त को उस कागज़ पे उतराने के मिशन पे थी। बीच बीच में तुम अपना सर उठा कर मेरी तरफ देखती और मुझे अपनी और देखता पा कर तुम शर्माकर हँस देती। तुम इशारे से मुझ से थोड़ा वक़्त और माँगती जिसपे मैं अपनी गर्दन हिला कर  तुम्हें कहता की मैं यहीं हूँ, तुम आराम से स्केच करो। तुम स्केच खत्म करती और मुझे दिखाती।
"बहुत ही सुंदर बनाया है, बिल्कुल रियल लग रहा है।" मैं कहता जिसपे तुम कहती "तुम हमेशा यही कहते हो।" और मैं कहता 
"मैं हर बार यह इसलिए कहता हूँ क्योंकि यह सच में बहुत सुंदर है और........रियल भी बिल्कुल तुम्हारी तरह" तुम थोड़ा झिझकर बोलती "मतलब,  मैं रियल ही हूँ, देखो मैं यहाँ तुम्हारे सामने बैठी हूँ और इस पर मैं हँस देता। तुम थोड़ा चिढ़ जाती और मेरा हाथ अपने हाथ में लेकर हम दोनों की उंगलियों को आपस में उलझाने लगती । तुम्हारे हाथ मेरे हाथों में मुझे बिल्कुल ठंडे महसूस होते, और हाँ बेहद कोमल भी। मैं अपनी आँखे बंद करता और तुम्हारे हाथों की बनावट को trace करने लगता, मैं तुम्हारी हथेली को अपने गालों पे रखता और फिर  तुम्हारी हथेली को चूम लेता। तुम अपना हाथ पीछे खींच लेती और एक दबी हँसी के साथ कहती "लो अब हो गया विश्वास की मैं एकदम रियल हूँ और  यहीं इस कैफ़े में हूँ तुम्हारे साथ ।
मैं अपनी आंखें खोलता और तुम्हारी तरफ देखकर हल्के से  मुस्कुराता और अपनी गर्दन इनकार में हिलाने लगता जिसपे तुम अपना माथा सिकोड़े अपनी नज़रे मुझे पे टिकाए मुझे गौर से देखती,  जैसे मैंने कुछ गलत कहा हो या कुछ गलत कर दिया हो जिसकी उम्मीद तुम्हें कभी नही थी। 

तुम कहती "तुम क्या कह रहे हो", मैं हँसता और कहता कि "तुम रियल नहीं हो, तुम यहाँ इस वक्त हो भी नहीं, यह सब कुछ भी रियल नहीं है। तुम बस मेरे दिमाग में हो, मैं बस तुम्हारा यहाँ होना hallucinate कर रहा हूँ। असल में मैं अकेला इस कैफ़े में बैठा हूँ।"

यह सुनते ही तुम थोड़ा नाराज़ हो जाती और गहरी साँसे भरने लगती। "what nonsense akash, यह सब तुम क्या कह रहे हो you know I don't like this kind of jokes" तुम कहती जिसपे मैं बस चुप तुम्हारी और देखते रहता। तुम  परेशान होने लगती तुम्हारी साँसे तेज़ चलने लगती, तुम अपनी स्केच की हुई शीट उठाती और उसे हवा में लहराकर कहती। "तो यह क्या है कह दो यह शीट नकली है, कह दो की इसपे कोई स्केच नहीं है।"

मैं थोड़ी देर चुप रहता और  एक गहरी सांस लेकर कहता
 "वहाँ कोई शीट नहीं है और न ही कोई स्केच, तुम्हारे हाथ एकदम खाली है। "
 मेरा इतना कहते ही  तुम अपने हाथों की तरफ देखती और उसे तुम खाली पाती" तुम मेरी तरफ देखती और कहती "यह कैसे हो सकता है, हम तो यहीं है। this is not possible" तुम अपना चेहरा अपने दोनों हाथों में दबा लेती। मैं तुम्हारे हाथों को चहेरे से हटाता और कहता।

"हम नहीं बस मैं, बस मैं हूँ यहाँ , यहाँ सब कुछ रियल है सिवाए तुम्हारे। मैं चाहता हूँ कि काश तुम यहाँ होती मगर ऐसा नही है। तुम्हारा यहाँ मेरे सामने होना सिर्फ एक mirage है जो कि मेरे इस दिमाग की उपज है।"

तुम सब कुछ समझ जाती और मुझसे कहती कि तुम हमेशा मेरे साथ हो और रहोगी जिसपे मैं मुस्कुरा देता। तुम भी मुस्कुराने लगती तभी अचानक तुम्हारा चेहरा चमकने लगता और तुम्हारे आस पास फूल खिलने लगते तुम किसी परी सी खूबसूरत दिखाई पड़ती जिसपे मैं अपने जेब से अपना फोन निकलकर तुम्हारी तस्वीर लेने की कोशिश करने लगता। मैं तस्वीर खींचता मगर सामने की खाली  कुर्सी की तस्वीर खींच जाती, मैं उसे डिलीट करता और पहले एक और  फिर दो, तीन, चार न जाने कितनी तस्वीरे खींचता परन्तु हर बार फ्रेम में वहीं खाली कुर्सी नजर आती। मैं झलाकर फोन फेकने ही वाला होता हूँ कि तुम मेरा हाथ पकड़ लेती और मुस्कुराकर कहती 

" तुम भूल गए, मैं रियल नहीं हूँ। तुम बस मेरा यहाँ होना hallucinate कर रहे हो।" मैं अपना फोन टेबल पे एक तरफ रखता और तुम्हारी तरफ देखने लगता और मेरी आँखों से आँसूं गिरने लगते जिसे तुम उठकर अपने होंठों से चुम लेती। मैं आंखे बंद करता और तुम अपने होठ मेरे होठों पे रख देती  और मेरे हाथों को वापस अपने हाथों में लेकर कहती-
 "शुक्रिया मुझे हमेशा अपने जहन में जिंदा रखने के लिए, हमेशा मुझे अपने पास बुलाने के लिए और हमेशा अपने लिखे में मुझे थोड़ी जगह देने के लिए।"

मैं आंखें बंद किए मुस्कुराने लगता। वेटर आता और मेरे सामने बिल रखकर मुझसे कहता कि "सर कैफ़े बन्द करने का समय हो गया है"और तब मैं 'अपनी दुनिया' सॉरी 'हमारी दुनिया' से बाहर  आता । मैं अपनी आंखें खोलता और मुझे सामने वाली कुर्सी के साथ- साथ पूरा कैफ़े खाली मिलता। एक कॉफी लेके इतनी देर तक वहीं बैठने के लिए मुझे शर्मिंदगी महसूस होती और मैं खुद से कहता कि अब तुम्हारे बारे में नही सोचूँगा, सीधे घर जाऊंगा। 
मैं बिल देकर बाहर आता, घर जाने के लिए कैब बुक करता और मैं कैब में बैठकर जैसे ही मैं अपनी दवाई लेने वाला होता हूँ कि, एक हाथ मेरे कंधे को छूता है और मैं रुक जाता हूँ मैं क्या देखता हूँ  कि तुम बगल में बैठी हो। तुम अपनी गर्दन हिलाती हो और मैं दवाई की डिब्बी वापस अपने बैग में रख देता हूँ। तुम्हारे चेहरे पे एक राहत की  झलक आती है और तुम ड्राइवर को मरीन ड्राइव चलने को कहती और मेरी तरफ सहमति के लिए देखती । मैं अपनी घड़ी देखता, आधी रात हो चुकी होती है मगर मैं हामी में सर हिलाकर ड्राइवर को इशारा कर देता हूँ और ड्राइवर गाड़ी भगा लेता है।

- लेखक ( आकाश छेत्री)


Comments

  1. बहुत प्यारी नोक झोंक और प्रेम से भरी पोस्ट लेखन में लग रहा है कि स्वयं को महसूस कर रहा हूँ

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