इंतज़ार (The wait)
दोनों निज़ामुद्दीन की दरग़ाह में बैठे थे। वह अपने दोनों हाथों को इबादत में उठाए कुछ बड़बड़ा रहा था। उसके होंठ तेज़ी से हिल रहे थे। उसकी आँखें बंद थी और वह पूरी शिद्दत से अपने खुदा से बात कर रहा था।
वह उसे चुप बैठी एकटक देख रही थी, उसने उससे दो मिनट और रुकने के लिए कहा था मगर पिछले बीस मिनट से वे यूँहीं बैठे थे। वह बार-बार अपनी कलाई पे बंधी घड़ी पे नज़र मार रही थी, उससे रहा नही गया और वह बोल पड़ी।
"सुन ली तुम्हारे खुदा ने तुम्हारी, अब चलो राहिल"
उसने कहा मगर वह अपनी जगह से हिला तक नही जैसे उसने उसे सुना ही नही हो। उसने उसका कंधा हिलाया और वह अपनी दुनिया से बाहर आया।
"तुम दो मिनट भी नहीं रुक सकती न, सब्र नाम की चीज़ नही है तुममें ग़ज़ल" उसने चिढ़ते हुए कहा।
"पिछले बीस मिनट से दो मिनट, दो मिनट बोल रहे हो। ऐसा क्या मांग रहे हो अपने खुदा से?"
"तुम्हें, मैं तुम्हें मांग रहा हूँ ग़ज़ल। मैं मांग रहा हूँ कि तुम कल दुबई न जाओ, मैं दुआ कर रहा हूँ कि तुम हमेशा के लिए यहीं रहो। हाँ, मैंने तुम्हारे बैग में तुम्हारा कॉलेज का approval letter देख लिया है। जिसे न जाने तुम कब से छुपा रही थी।" यह कहते हुए उसके आंखों में आँसू छलक आया वह निकलकर दरगाह से बाहर आ गया और ग़ज़ल भी उसके पीछे पीछे बाहर आ गई और पीछे से उसका हाथ पकड़कर बोली।
"मैं...मैं तुम्हें बताने ही वाली थी राहिल"
"कब ग़ज़ल, तुम कब बताने वाली थी। अपने जाने के बाद।" उसकी आवाज़ में दर्द साफ झलक रहा था।
"नहीं, वो दरसल मैं तुम्हें आज ही बताने वाली थी इसलिए तो मैं इतनी रात में भी तुम्हारे साथ हूँ। मैं बस सही मौके का इंतज़ार कर रही थी राहिल"
"मगर तुम ऐसे कैसे जा सकती हो? तुमने तो कहा था कि.." वह चुप हो गया, उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या बोले।
"Come on राहिल, हम सभी को अपने करियर पर फोकस करना होता है। it's not a big deal और वीडियो कॉल्स से तो कनेक्टेड रहेंगे ही न।"
"और हमारा रिश्ता वो तो long distance हो जाएगा न ग़ज़ल। तुम जानती हो long distance doesn't work"
"हम मैनेज कर लेंगे, और हमारा प्यार इतना weak नही है कि कुछ मील की दूरी उसे धुंधला कर दे।" है न? उसने कहा और राहिल ने मसयूस होकर हामी में सर हिला दिया।
"और मेरे पीछे कोई और मत पटा लेना जनाब" उसने उसे छेड़ते हुए कहा।
"तुम्हारे अलावा मेरा किसी पे ध्यान नही जाता पटाने की बात तो दूर की है।"
अच्छा, मुझे मालूम नही था कि इतना प्यार करते हो मुझसे उसने कहा और उसके होठों पर अपने होंठ रख दिए।
उसके चेहरे पे एक हल्की मुस्कान आ गई, जिसे देखकर ग़ज़ल भी हँस पड़ी।
"अपने खुदा से यह दुआ करना कि मैं जल्दी लौट आऊं और हम दोनों जहां भी हो एक दूसरे के लिए हो।" उसने भी अपने आँसू पोछते हुए कहा।
राहिल से रहा नहीं गया और उसने उसे अपने सीने से लगा लिया और दोनों काफी देर तक यूँही एक दूसरे के बांहों में समाए रहे। रात की चाँदनी दरगाह की जाली से छनते हुए उन पर पड़ रही थी और दोनों धूधिया रंग में चमक रहे थे।
"अब छोड़ो मुझे, यूँही पकड़े रहने का इरादा है जनाब। सुबह 4 बजे मेरी फ्लाइट है और already 3 बज चुके हैं।"
"क्या मैं तुम्हें एयरपोर्ट तक ड्राप करने आ सकता हूँ।"
"मैं चाहती हूँ कि तुम आओ मगर अच्छा होगा कि तुम न आओ"
"क्यों, ग़ज़ल"
"क्योंकि तुम मुझे दूर जाता हुआ नही देख पाओगे और तुम्हें देखकर मैं अपने कदम आगे नही बढ़ा पाऊंगी।"
दोनों चुप हो गए और एक दूसरे को देखने लगे दोनों एक बार और गले मिले और वह थोड़ी देर बाद कैब में बैठ गई। जाने से पहले उसने उसे एक गुलाब और अपनी निदा फाज़ली की सबसे फ़ेवरेट किताब दे दी।
"मैंने इसमें वो सारी लाइंस मार्क की है जो मुझे हम दोनों की याद दिलाती है। मुझे पता है तुम्हें किताबे पढ़ना पसंद नही मगर इसे जरूर पढ़ना। मेरे एहसासों को और भी जानने का मौका मिलेगा तुम्हें।"
कैब चलने लगी और वह उसका हाथ पकड़े हुए कैब के साथ -साथ चलते हुए कहने लगा।
"मैं इसे जरूर पढूंगा ग़ज़ल, जरूर पढूंगा मैं इसे। मैं वादा करता हूँ कि जब तुम वापस आओगी तब मैं तुम्हें यह पूरी किताब बिना देखे सुनाऊँगा।" तुम जल्दी आना ग़ज़ल, ग़ज़ल देखो तुम जल्दी आना। तुम्हें मालूम है मैं ज्यादा वक्त तक चीज़े याद नही रख पाता हूँ ग़ज़ल, तो तुम जल्दी आना वरना मैं यह किताब से याद की गई चीज़े भूल जाऊंगा और तुम्हें सुना नही पाऊंगा। देखो तुम जल्दी आना ग़ज़ल।" वह कहता रहा।
कैब की रफ़्तार तेज़ हो गई थी। मगर राहिल अभी भी उसका हाथ पकड़े हुए था।
"देखो तुम गिर जाओगे राहिल मेरा हाथ छोड़ दो वरना तुम सच में गिर जाओगे" उसने कहा।
राहिल की पकड़ ढ़ीली होने लगी ग़ज़ल ने अपना हाथ छुड़ा कर अंदर कर खींच लिया और राहिल खड़ा बस उसका जाना देखता रहा। वह थोड़ी देर स्तब्ध सा होकर खड़ा रहा जब कैब उसके नज़र से दूर हो गई तब उसे समझ आया कि अभी अभी क्या हुआ था।
"जल्दी आना ग़ज़ल, जल्दी लौट आना" हम एक हैं ग़ज़ल और मैं तुम्हारा इंतज़ार करूँगा तुम दौड़कर मेरे पास आना ग़ज़ल।"
वह चिल्लाया और अपने आँसू पोंछेते हुए खाली सड़क पे बैठ गया और ग़ज़ल की किताब को सीने से लगाकर फूट फूटकर रोने लगा।
-लेखक (आकाश छेत्री)
(picture credit goes to the respected owner)
छोटी छोटी टाइपिंग त्रुटियों को भुला दें तो ये बहुत ही सुंदर लिखी हुई कहानी थी।मुझे लगता है कहीं न कहीं चुम्बन वाले वाक्य से पहले आप उन दोनों को दरगाह से बाहर लाने वाला वाक्य डाल सकते थे, क्योंकि अमूमन लोग ग़लत ही सोचते हैं इसे कि दरगाह में कैसे कर सकते हैं, कोई offence नहीं है, बस दिल में आ गयी बात तो कह दी। Otherwise आपका लेखन हमेशा ही सराहनीय होता है। अगली रचना का इंतेज़ार रहेगा।
ReplyDeleteकोई भी व्यक्ति गलतियों से ही सीखता है। कई बार ऐसी छोटी-छोटी details टाइप करते हुए ध्यान से निकल जाती है। मगर जिसके आपके जैसे दोस्त हो वो सही रहते हमारी हमारी गलतियों को सुधारने में मदद करतें है। offence होने की कोई बात ही नही जी मित्र मुझे तो अच्छा है जब आप अपना फ़ीडबैक देते हो यह इस बात का भी प्रमाण है की आप कितने ध्यान से मेरा लिखा पढ़ते हैं। बाकी बहुत ही आभारी हूँ आपका, ऐसे ही अपना support बनाए रखें।❤️🙏🦋
Deleteऔर दरग़ाह वाले भूल को भी सुधार दिया गया है।
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