तो क्या यह अंत है हमारा?

तो क्या यह अंत है हमारा?
क्या इसी तरह दो प्रेमी बिछड़ जाते हैं?

ऐसे ही बिछड़ जाते है दो लोग जिन्होंने कभी एक दूसरे के साथ जीवन बिताने के सपने बुने थे?

यही वो समय है जब हम एक दूसरे के लिए फिर से अनजान हो रहे है, अब किसी तरह का कोई रिश्ता कोई निकटता नहीं रहेगी हमारे बीच मतलब अब मैं तुम्हें कभी फोन नहीं कर पाऊंगा और तुम कभी मुझे अपने पास नहीं बुलाओगी। क्या सभी प्रेम कहानी ऐसे किसी अंत से गुजरा करती है?

और क्या हो अगर जो मुझे यह अंत स्वीकार न हो तो, क्या हो अगर मैंने अभी भी अपनी उम्मीदें उस समय पर टांग दी हो जहां तुमने अलग होने का निर्णय लिया था। क्या मेरे उम्मीद और मेरे इंतजार में वो क्षमता और सच्चाई होगी जो एक दिन वापस से वो निकटता तुम्हारे और मेरे बीच स्थापित कर सके, वो रिश्ता हमें लौटा सके ? मगर क्या छूटी हुई चीजें कभी लौटकर वापस आती है?

नहीं मुझे यह अंत स्वीकार नहीं हैं, मुझे स्वीकार नहीं कि किसी के छोड़ दिए जाने पर भी मैं इस बार उस शख्स के इंतज़ार में खड़ा रहूँ हूँ मगर सिर्फ किसी एक का यह सब चाहना काफी है? मैं अब थक गया हूँ लोगों से असल जीवन की जगह लेखन मे मिल मिल कर अब इस मोड पर आकर मैं तुमसे शब्दों के विन्यास में नहीं मिलना चाहता हूँ। मैं नहीं चाहता हूँ कि मैं सिर्फ लेखन में अब हमारे होने को दर्ज करूं। मैं जिन चीजों से ठीक इस वक्त गुजर रहा हूँ मैं इसे romanticise नहीं करना चाहता परंतु लेखक के पास कोई चारा भी तो नहीं है। क्या किसी का जाना पूरी तरह से जाना हो पाता है? क्या कोई भी पूरी तरह से कहीं से निकल पाता है? क्या तुम कभी मेरे भीतर से पूरी तरह से जा पाओगी? तुम्हारा एक हिस्सा जो अब मेरे पास है वो कैसे जा पाएगा? क्या मेरी उपस्थिति की कमी तुम्हारे दिनचर्या से कभी जा पाएगी? क्या तुम मुझे अपने भीतर से कभी खत्म कर पाओगी?

क्या यह सारे सवाल जो हम एक दूसरे से पूछ नहीं पाए, क्या इन सभी सवालों को हम कभी पीछे छोड़ कर आगे बढ़ पाएंगे?

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