घनिष्ठ मित्रता

मैं घनिष्ठ मित्रता से डरता हूँ और मैं हमेशा से ही घनिष्ठ मित्रता से दूर रहने की कोशिश करता हूँ और इसी के चलते मैं किसी को खुद के उतने क़रीब आने नही देता जहां वो मेरे बारे में उन बातों को जान जाए जिससे वे घनिष्ठता के दायरे में आ जाए। घनिष्ठ रिश्ता हमेशा अपने साथ ज़िम्मेदारियों और वादों का बोझ लेकर आता है जिसे आपको हर परिस्थितियों में ढोना पड़ता है और मैं हमेशा से इस बोझ को ढोने से बचते आया हूँ। शायद दूसरे लोगों के लिए वादे करना आसान है या शायद मैं कायर हूँ जो रिश्तों में किसी भी तरह के कमिटमेंट से बचते आया हूँ। मित्रता जब घनिष्ठ न हो, बस casual हो तो सब कुछ सरल होता है आपको ज्यादा दिखावा नही करना पड़ता और न ही मित्र को किसी चीज़ के लिए मना करने के लिए ज्यादा बहाने बनाने पढ़ते। मित्रता जब घनिष्ठ होती है तो आपको वो चीज़े भी करने पड़ते है जिसमें आप राज़ी नहीं होते और फिर वो चीज़ करने के बाद आपको पूरे दिन उस निर्णय का पछतावा होता रहता है। घनिष्ठ मित्रता में बात बात पे रूठना मानना का खेल होता है जो मुझे ठीक से खेलना कभी नही आया। मुझे हमेशा से casual  मित्रता पसन्द आती है जिसमें जटिलता का नामोनिशान नही होता, आप एक आज़ाद व्यक्ति होतें हो और न ही आपको भविष्य में उस रिश्ते के बिगडने की चिंता रहती है। मैं ऐसे कई लोगों से मिलता हूँ जो मुझे थोड़ा जानने का के बाद मेरी तरफ घनिष्ठता का हाथ बढ़ाता है मगर मैं हमेशा ऐसी स्थिति में थोड़ा झेंप जाता हूँ और अपने हाथ को जेब में ही रखे रखता हूँ मुझे मालूम होता है कि एक बार मैंने उसे घनिष्ठ मित्र बना लिया तो उसके साथ आने वाले terms and conditions को भी अपनाने पड़ेंगे जिसके लिए मैं शायद कभी तैयार नही होऊंगा।

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