अम्रता, तुम्हारे लिए (लघु कथा)
दोनों एक फंक्शन में थे जहां अचानक उसने इतने सालों बाद उसे देखा था। उसने उसे दूर से ही पहचान लिया था, क्योंकि वह भीड़ से अलग खड़ा था। वह उसके पास गई और कहा।
"हाय, पहचाना?"
वह जब मुड़ा तो वह उसे वहाँ देखकर चौंक गया, उसने गर्दन हिलाकर उसके अभिवादन का जवाब दिया मगर कुछ भी नहीं बोला। उसकी चुपी देख वह कुछ देर रुकी फिर बोली-
"कैसे हो? मैं याद हूँ या मुझे भूल गए हो?" उसने पूछा
"हां, तुम मुझे याद हो।" उसने बेहद रूखेपन से कहा।
"गर्लफ्रैंड के साथ आये हो? कहाँ है वो?"
"नहीं, मैं अकेला ही हूँ।" वह जानता था कि एक लड़की जो आपकी ex रही हो उसे आपके लव लाइफ से कुछ लेना देना नहीं होता है, न ही इस बात से की आप वर्तमान में किसके साथ है। उन्हें बस इस बात की पुष्टि करनी होती है कि आपकी वर्तमान की प्रेमिका उससे ज्यादा खूबसूरत है या नहीं।
शुशांत ने उसकी तरफ देखा अम्रता के आँखों के नीचे गड्ढे थे और वह थकी हुई भी लग रही थी मानो वो कई रातों से सोई न हो।
"तुम ठीक से सो नही पा रही हो ?" वह बोल पड़ा।
"नहीं...न.. सो तो रही हूँ।" उसने झूठ बोला।
"दिख रहा है, कितनी सोती हो" वह बोला
उसे मालूम था कि उसकी शादी जिस डॉक्टर से हुई थी उसके पास अम्रता के लिए जरा भी समय नहीं था। वह कई कई दिनों तक घर नही आता था और आता भी था तो उसके सोने के बाद और उसके उठने से पहले चला भी जाता था। अम्रता का सर पर जब तक हाथ न फेरा जाए उसे नींद नहीं आती थी, जब वे साथ थे तो शुशांत हर रात छुपके से आके उसके सर पर हाथ फेरकर उसे सुला कर जाता था।
"अच्छा, वैसे तुम क्या कर रहे हो इन दिनों?" उसने विषय बदलने के इरादे से पूछा।
"मैं कवि बन गया हूँ और मेरी अभी अभी पहली पुस्तक आयी है।"
यह सुनकर उसकी आँखों में दर्द झलक आया। वह थोड़ी ठिठक गई।
"तो आखिरकार तुमनें अपने दर्दों को बेचना शुरू कर ही दिया, क्यों?"
"हां, क्योंकि किसी ने कहा था अपने दर्द को मुझे मत दिखाओं उसे लिखों, दर्द कागजों पे ज्यादा बिकता है।"
उसकी इस बात से उसके दिल में एक टीस उठ आयी। वह जानती थी कि वह उसके बारे में बात कर रहा था।
जिस तरह उसने उसके प्रेम को छोड़ के बंबई के डॉक्टर का हाथ पकड़ा था। उसका उसके प्रेम को ठुकराना उसे तोड़ गया था। वह कई बार उससे मिलने आया था और उससे अपने प्रेम की भीख मांगा था लेकिन उसने हमेशा ही उसकी तरफ ध्यान नहीं दिया। उसने कसम भी खाई थी कि वह लिखना छोड़ कोई आफिस की जॉब पकड़ लेगा परंतु वह धीरे-धीरे उससे अपना रिश्ता तोड़ती चली गई थी। आखिरी मुलाक़ात के वक़्त उसने उससे कहा था कि यह कविताएं लिखने से घर नही चलता, तुम कितनी ही प्रेम से भरे शब्द किसी लड़की के लिए लिख लो असल ज़िन्दगी में एक लड़की प्रेम से ज्यादा एक स्थिर और सम्पन्न जीवनसाथी और उसका साथ चुनती है।
उसने उस दिन उसे अपनी पहली ऐसी कविता सुनाई थी जिसमें सिर्फ दर्द था और उसने उसे उसके सामने फाड़कर उसे कहा था कि यह सब बस दो पल का ढोंग है अगर उसे इतना ही दुख है तो इन्हें कागज़ पे उतारे "दर्द कागज़ों पर अच्छा बिकता है,प्रेम की जगह दर्द को महसूस करो और उसे लिखो तब शायद तुम्हारा कुछ हो जाए" क्योंकि लोगों को दुःख और पीड़ाओं को सुनना अच्छा लगता है।
"वैसे एक बात बताओं तुम्हें कैसे पता कि मैं कैसी कविता लिखता हूँ तुम्हें कैसे पता कि मैं अपना दर्द बेच रहा हूँ? क्या तुमनें मेरी कविताएं पढ़ी है।"
"नही...नही मैं क्यों पढूंगी। मुझे तो यह भी नही पता थी कि तुम अभी भी लिखते हो वो तो मैं बस..... वह बीच में ही रुक गयी। उसे पता था वह जितना बोलेगी वह अपने अंदर उमड़ रहे तूफ़ान को उसके सामने उजागर करती जाएगी। असल मैं उसने उसकी एक दो कविता इंटररनेट पे पढ़ी थी।"
"तुम आज भी ठीक से झूठ नही बोल पाती हो, तुम्हारी झूठ बोलते वक़्त हकलाने की आदत गयी नही अभी तक।"
"तुम मुझे कितनी अच्छे से जानते हो शुशांत?"
"क्या फायदा तुमने चुना तो आखिर किसी और को ही न?"
यह मत कहो, ओके तुम भी तो कहते थे कि तुम मुझे कभी भूल नही पाओगे, कि तुम सिर्फ मेरे लिए लिखते हो और मेरे बारे में लिखते हो मगर देखो आखिर तुम भी मूव ऑन कर ही गए न, भूल गए न मुझे, फीका पड़ गया न सच्ची मोहब्बत का रंग? उसने कहा उसकी आवाज़ में एक गुस्सा और शिकायत थी।
हह, वह हँसा, "सही बात है", उसने कहा और उसे छोड़ वहाँ से निकलने लगा।
वह कुछ बोलने ही वाली थी कि stage पे announcement होने लगी।
( Attention ladies and gentlemen, please welcome on the stage, the special guest of tonight. The poet himself of his latest best-selling poetry book "अम्रता, तुम्हारे लिए" please welcome शुशांत शुक्ला)
उसने देखा वह स्टेज पे पहुँच चुका था और उसके पहुँचते ही उसने माइक लिए और कहा।
मैं ज्यादा कुछ नही कहूंगा, क्योंकि कुछ कहने को है ही नहीं। उसकी नज़र सीधा अम्रता को ही देख रही थी और उसकी नज़र में एक बेरुखी थी जिसे अम्रता देख रही थी, उसकी नज़र, उसके एक एक अल्फ़ाज़ अम्रता के सीने को चीर रहे थे। वह लगातार बोले जा रहा था।
"जिसके लिए मैं हमेशा से लिखते आया हूँ उसे लगता है मैं उसे भूल गया हूँ ठीक है यही सही पर काश वो समझ पाती उसने कहा और चुप हो गया।"
किसी ने एक चुटकी बजाई और उसकी किताब का टाइटल और कवर रिवील हुआ जब कवर रिवील हुआ तो अम्रता दंग रह गई उसके आँख में पानी आ गया और उसका दिल अंदर से टूट गया। किताब का टाइटल था 'अम्रता तुम्हारे लिए' और किताबे के कवर पे शुशांत का सीना था और जो हाथ था और उसपे जो अँगूठी थी वह और किसी का नही उसका था। अम्रता उसे देखते ही पहचान गई थी। उसके आंखों से आँसू छलक आये वह रोने लगी उसे शुशांत की बात याद आने लगी जब उसने कहा था कि
"देखना अम्रता एक दिन में अपने लिखे से तुम्हें अमर कर दूंगा।" आज वह सचमुच अमर हो चुकी थी वह भी उस इंसान के द्वारा जिसको उसने ठुकरा दिया था, जिससे उसने सदा प्रेम करने का वादा किया था। वह शुशांत की तरफ बढ़ने लगी परंतु तब तक वह वहाँ से जा चुका था।
अगले दिन शुशांत जब अपने होटल के पास वाले बूकस्टोर पर कुछ किताब ढूंढ रहा था कि तभी वहाँ एक लड़की की आवाज़ सुनाई दो जो बूकस्टोर काउंटर वाले से "अम्रता तुम्हारे लिए" किताब मांग रही थी। जाहिर तौर पर शुशांत उसे उसकी आवाज़ से पहचान गया था वो और कोई नहीं अम्रता थी। वह एक शेल्फ के पीछे छिप गया ताकि वह उसे न देख सके और उससे देखने लगा। उसने देखा उसने बुक ली और स्टोर में ही उसे खोलकर पढ़ने लगी वह काफी देर तक किताब पढ़ती रही और वह उसे देखता रहा। किताब के हर पन्ने पलटने के साथ, हर कविता के साथ अम्रता के आंखों से आँसू निकल रहे थे। वह हल्की हल्की सिसकियां लेकर रो रही थी ताकि किसी दूसरे को सुनाई न दे। यह देखकर शुशांत की आंखें भी नम हो गई। जो अम्रता कभी उसके लिखे का मज़ाक बनाती थी, उसके लिखे को बचकाना मानती थी आज वही उसके लिखे में छिपे एहसासों को, दर्द को महसूस कर पा रही थी। वह यूँही उसे देखता रहा वह उसके पास जाना चाहता था पर वो फिर से उसके करीब जाने से डरता था क्योंकि बहुत मुश्किल से उसने खुद को संभाल था साथ ही वह अम्रता को भी शर्मिंदगी में नही डालना चाहता था। इसलिए वह उसके सामने नहीं आना चाहता था। पर वो उसे इस तरह छोड़ कर जाना भी नहीं चाहता था इसलिए उसने एक पन्ने पे कुछ लिखा और एक कर्मचारी को उसे देने को कहकर वहाँ से चला गया। कर्मचारी अम्रता के पास गया और उसने अम्रता को वह पर्ची पकड़ा दी और उसके पूछने पे बताया कि पर्ची एक अनजान आदमी ने दिया था। अम्रता ने देखा पर्ची के साथ एक रुमाल भी था जिसपे दो सितारें बने थे यह वही रुमाल था जिसे एक वक्त पे उसी ने शुशांत को उपहार स्वरूप दिया था। रुमाल देखते ही वह समझ गयी कि यह पर्ची किसने दी थी उसने रुमाल से अपने आँसू पोछे और भागते हुए स्टोर के बाहर निकल आई, उसकी आँखें शुशांत को ढूंढने लगी परंतु वह कहीं भी न था। उसने एक बार रुमाल को चूमा और पर्ची खोला उसपे कुछ लिखा था
"मुझे हमेशा से लगता था कि मेरे शब्द तुम्हारे आगे फीके है। उनका तुम्हारे सामने कोई मोल नहीं है और तुम्हारे मन को छूने के लिए यह कभी काफी नहीं होंगे। तुम भी उन्हें बचकाने समझती रही, तुम उन्हें थोड़ा समझने की कोशिश करती तो शायद तुम्हें अंदाजा होता कि मैं तुमसे कितना प्रेम करता हूँ परन्तु आज तुम्हें बूकस्टोर पर मेरी किताब को पढ़कर रोते हुए देखा और मुझे यकीन हो गया कि तुम उन शब्दों के पीछे के एहसासों को समझ पा रही हो और उनमें बसे दर्द को भी तुम अपने भीतर महसूस कर पा रही थी। तुम सोच रही होगी कि तुम्हें रोता देखना इन शब्दों की जीत है परंतु ऐसा बिल्कुल नहीं। मैंने हमेशा वह शब्द लिखे जो तुम्हारे होठों पर मुस्कान लाये मगर तुम्हें हमेशा से इन शब्दों में दर्द देखना था "दर्द कागज़ पे ज्यादा बिकता है" तुम्हारा यही कहना था।
देखो तुम्हारे जाने के साथ ही इन शब्दों में दर्द भर आया है। नहीं तुम ऐसा मत सोचना की मुझे अब तुमसे प्रेम नहीं है, मैं आज भी तुमसे उतना ही प्रेम करता हूँ और करता रहूँगा और इसके लिए मुझे तुम्हारे क़रीब आने की भी जरूरत नहीं है। तुम अपने जीवन में खुश रहो मैं यहीं दूर बैठे हुए तुमसे प्रेम करता रहूँगा। हाँ एक और बात कहनी है हो सके तो आगे से मेरी कोई किताब मत पढ़ना। मैं तुम्हें रोता हुआ नही देख सकता, वो किताब भी मत खरीदना और इस नोट को भी यहीं फेक देना इसे संभाल कर रखोगी तो कभी खुश नहीं रह पाओगी ।
नोट पढ़कर अम्रता पूरी तरह टूट गई, वह सड़क पे बैठकर पन्ने को सीने से लगाये रोने लगी।
"जो दर्द मैंने तुम्हें दिया अब मैं उन्हें अपने साथ रखूँगी और अब तुम तो मेरे नहीं हो सकोगे मगर तुम्हारे यह शब्द हमेशा मेरे साथ रहेंगे"
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