छज्जे वाला प्यार
'तेरे दर पर सनम चले आये तू न आया तो हम चले आए' छत पर रखे रेडियो पे 1993 में आई फिल्म 'फिर तेरी याद आई का गाना बज रहा था और अभिनव बेचैन कदमों से पेंडुलम की भांति इधर-उधर घूम रहा था।
अचानक एक बेर का दाना उसके सर पर आके लगा वह मुड़ा तो पाया कि सोनाली छत पर आ गयी थी अभिनव लक्ष्मी नगर के एक ऑफिस में काम करता था और सोनाली अपने कॉलेज के द्वितीय वर्ष में थी दोनों के घर के बीच एक ही घर आता था और वही घर की छत उनके बीच एक फासला थी। अभिनव ने जब उसे देखा तो बोल पड़ा।
"क्या यार इतना टाइम लगता है छत पे आने में।"
जब आप किसी का इंतजार कर रहे हो, वो भी किसी ऐसे का जिससे आप प्रेम करते हो तो इंतजार का एक-एक पल भी घण्टों के समान प्रतीत होता है।
"यार टाइम तो लगेगा न बहाना करके आना पड़ता है परवालों से मैं तुम्हारी तरह अकेली थोड़े न रहती हूँ " सोनाली ने सफाई दी।
"अच्छा वो सब छोड़ो यह बताओ कल प्रगति मैदान चले क्या ट्रेड फेयर लगा हुआ है कल आखिरी दिन है इसी बहाने कुछ वक्त साथ बिताएंगे। अच्छा मौका है। मैंने ऑफिस से छुट्टी भी ले ली है।" अभीनय उतेजित होकर बोला।
"कल कल तो मुश्किल है यार मौसी जी आ रही है पटना से तो मम्मी पापा उन्हें लेने स्टेशन जाएंगे और घर पर सूरज अकेला रहेगा तो मुझे उसके साथ रहना पड़ेगा।"
"तुम्हारा तो हमेशा यही नाटक होता है यार तुम्हारे मम्मी पापा स्टेशन जाएगे न तुम तो निकल ही सकती हो घर से और सूरज को अपने किसी फ्रेंड के घर छोड़ देना सिंपल"
"हाँ, और गली की आंटियों का? तो बता देंगी न मम्मी को की आपकी बेटी सुबह घर से निकल गयी, सूरज को कहीं लेकर" सोनाली बोली.
"तुम कुछ और न करना जिन्दगी में बस आटियों की फिक्र करना, मेरी भी फिक्र कर लिया करो कभी" अभिनद ने चिढ़ कर कहा। फिर दोनों अचानक चुप हो गए और सोचने लगे।
सच में आजकल प्रेमियों के बीच सबसे बड़ी कोई बाधा है तो वो है उनके आस-पास, गली-मोहल्ले के लोग जो सी. सी. टी. वी की तरह नौजवान प्रेमियों के निगहबान बने हुए हैं। लोगों से छिपते-छिपाते उन्हें प्रेम करना पड़ता है। ये तो खुल के अपने रिश्ते को समाज के सामने कुबूल भी करना चाहते है मगर कर नही पाते इस देश में प्रेम करना और उसे छुपाकर रखना बहुत ही कठिन कार्य हो गया है।
"अच्छा चलो एक काम करते है मैं सुबह छत पर आऊंगी, तुम यहीं मिलना, खूब बातें करेंगे।"- सोनाली ने कहा
"यार, यह छज्जे से मिलना, बातें करना कब तक चलेगा और हमारे बीच यह शर्मा जी की छत्त... यह तो मुझे कतई बर्दाश्त नहीं कमबख्त यह न होती तो हमारे घर एकदम सटे होने और मैं तुम्हारे हाथों का स्पर्श घंटो तक महसूस कर पाता" अभिनव ने कहा।
"जल्द ही यह सब खत्म होगा और तब तक तो हमारे पास इस तरह मिलने के अलावा कोई और चारा नहीं सोनाली बोली।
दोनों फिर शांत हो गए नज़रों की मुलाकात से शुरू हुए इस रिश्ते को दोनों नेक्स्ट लेवल पर लेकर जाना चाहते थे परंतु प्रेम की सामाजिक परिभाषा से दोनों बंधे थे समाज के मापदंड में प्रेम की व्यख्या वैसी नहीं है जैसा हम सोचते है बल्कि उससे बिल्कुल भिन्न है। अभिनव को शर्मा जी की छत अपने और सोनाली के बीच दीवार लग रही थी जो उन्हें मिलने से रोक रही थी मगर सिर्फ शर्मा जी की छत उनके बीच की दीवार नही थी। समाज के कई ऐसे नियम होते है जो दो प्रेमियों के बीच दीवार का काम करते हैं जिनसे शायद अभिनव अवगत नहीं था।
दोनों छत से ही ज्यादातर बातें करते और कभी-कभी सोनाली अभिनव के छत पे तो कभी अभिनय सोनाली के छत पे मिलते थे तथा गली वालों के नजरो से बचते हुए प्रेम के पल को जीते।
दोनों कभी कभी बाहर मिल लेते थे। कॉलेज के बहाने सोनाली अभिनव से मिलने उसके ऑफिस के बाहर आ जाया करती थी ।हाथ पकड़े दोनों पुराने किले के दीवारों पर संभल संभल कर चल रहे थे, दोनों को गिरने का डर नहीं था। एक दूसरे के हाथ को कस के पकड़े हुए थे। इंडिया गेट पर चाट पकोड़ी खान के बाद दोनों हाथ में हाथ डाले इंडिया गेट को निहार रहे थे। शाम को इंडिया गेट देखने का मजा ही कुछ और होता है और सोनाली के लिए यह पहला अवसर था।
प्रेम की गाड़ी में दोनों सवार थे एक बार अपने मोहल्ले से निकलने के बाद दोनों जैसे आजाद हो जाते थे अभिनव उसे नए-नए स्थानों की सैर करता था। सोनाली भी अभिनय का साथ पाकर दिल्ली शहर के कोने कोने को देखने के लिए उत्सुक रहती थी। कभी-कभी अभिनव अपने दोस्त की बाइक लेकर सोनाली को शहर घूमता था, बाइक पे बैठी सोनाली समय समय पर अभिनय को कस कर पकड़ लेती बाइक की रफ्तार से लगने वाले हवा के झोंके दोनो के प्यार को और तरो ताज़ा कर देते थे। मगर कोई उन्हें यूं देख न ले इस बात का डर उन्हें हमेशा लगा रहता था इसलिए जब सोनाली अभिनव के साथ होती तो ज्यादातर समय दुपटे से अपना चेहरा ढके रहती थी और अभिनव को यह जरा भी अच्छा नही लगता था।
शनिवार का दिन था अभिनव अपने छत पे लेटा अखबार पढ़ रहा था कि अचानक उसे गली में शोर सुनाई दिया। उसने छज्जे से नीचे देखा तो पाया कि नीचे दो कारे सोनाली के घर के पास आकर रुकी थी और सोनाली के मम्मी-पापा और मौसी कार में से उतरे लोगों का वेलकम कर रहे थे।
"लगता है कोई रिश्तेदार आये है सोनाली के घर अभिनव ने सोचा।
शाम को जब सोनाली छत पे आई तो उसका चेहरा लटका हुआ था। उसके बाल भी बिखरे हुए थे मानों किसी ने जान बूझ कर उन्हें खराब किया हो।
अभिनव जो सुबह से उसका छत पे जाने का इंतजार कर रहा था उसकी यह दशा देख चिंतित हो उठा।
"क्या हुआ?" तुम्हारा चेहरा क्यों लटका है? यह क्या हाल बना रखा है?- अभिनव ने चिंतित भाव से पूछा।
"आज मुझे लड़के वाले देखने आए थे सोनाली ने उदासी से कहा।
"क्या?" अभिनव चौका।
"हाँ और यह भी सुनों, मेरा रिश्ता तय हो गया है। लड़का सूरत में इंजीनियर है। उसके मम्मी पापा यही राजौरी गार्डन में रहते है। उसके मम्मी पापा ने कहा है कि शादी जितनी जल्दी हो जाये उतना अच्छा है अशोक 20 दिन के लिए दिल्ली आया है, उन्हें दहेज भी नही चाहिए और मम्मी पापा ने इस रिश्ते के लिए हामी भर दी है- सोनाली इतना कहते हुए फूट-फूटकर रोने लगी।
अभिनव का दिल यह बात सुनकर कचोट गया, उसे भीतर से ऐसा महसूस हुआ जैसे मानों उसकी सबसे प्यारी चीज़ को कोई उससे छीन कर ले जा रहा है।
'मगर... मगर तुम्हारा तो ग्रेजुएशन भी पूरा नहीं हुआ है और अभी तो तुम काफी यंग हो ऐसे कैसे उन्होंने रिश्ता तय कर दिया।" अभिनव झुंझलाया।
सब कुछ अचानक ही होता है अभिनव, जब हम उस दिन इंडिया गेट पे थे तब मेघा आंटी के लड़के 'बंटी' ने हमे देख लिया था और उसने अपनी मम्मी को हमारे बारे में बता दिया और उसकी मम्मी ने मेरी मम्मी को खबर कर दी। मम्मी तो तुमसे आके पूछना चाहती थी हमारे बारे में मगर पापा ने यह कहकर मना कर दिया कि इससे मोहल्ले में बदनामी होगी व शुक्लाओं का नाम समाज में उछलेगा।
"उस बंटी की तो मैं.....
"तुम ऐसा वैसा कुछ नहीं करोगे अभिनव में नहीं चाहती कि गली में तुम्हारे और मेरे परिवार के नामों की खिलियाँ उड़े। मैंने मम्मी को मनाने की बहुत कोशिश की मगर वह नहीं मानी।" सोनाली मायूस होकर बोली।
अभिनव से कुछ न कहते बना क्योंकि उसे भी मालूम था कि गली मोहल्ले के छतों के छज्जे से शुरू होने वाले ज्यादातर प्रेमियों का यही हश्र होता है। दोनों व्यक्ति प्यार के हिंडोले पे सवार तो हो जाते है परंतु मंजिल तक पहुँचने से पहले ही गिर जाते है। किसी ने खूब ही कहा है कि गली मोहल्ले का प्यार तो डॉक्टर, इंजीनियर ले जाते हैं।
रात हो चुकी थी लेकिन आज की रात सोनाली अभिनव के बिना नहीं बिताना चाहती थी। उसका दिल भीतर ही भीतर रो रहा था व दर्द उसकी आँखों से छलक रहा था। अभिनव भी असहाय महसूस कर रहा था दोनों को एक दूसरे की कही पुरानी बातें याद आ रही थी सोनाली कहा करती कि उसका ससुराल तो एक ही छत दूर है वहीं अभिनव उसे यह कहकर चिढ़ाता था कि गर उसने उसे ज्यादा परेशान किया तो वह उसे अपने छत से उसके छत पर फेंक देगा लेकिन आज दोनों का दिल अंदर से टूट रहा था। थोड़ी देर बाद सब फिक्र छोड़, सोनाली शर्मा जी की छत को लांघ कर अभिनव के छत पे आ गई अभिनव को आलिंगन में भर वह रोने लगी, उसकी सांसे तेज़ थी और सिसकियां लेता उसका शरीर बेज़ान सा प्रतीत हो रहा था। अभिनव दीवार के सहारे बैठ गया ताकि उन्हें कोई देख न सके, सोनाली भी उसकी गोद में समा गई। अभिनय के दाएं हाथ को वह इस क़दर कस के पकड़े हुए थी जैसे मानों अभिनव से कभी जुदा न होना चाहती हो। अभिनव का शर्ट सोनाली के आंसू को सोख रहे थे मगर उसका दर्द सोखने में नाकाम थे।
अभिनव भी चुप था क्या बोले? क्या करे? उसे भी समझ नहीं आ रहा था। सोनाली के बालों को सहलाते हुए वह अपने सपनों के बारे में सोच रहा था जो कभी उसने सोनाली के साथ देखें थे परंतु आज उसके वही सपने उसके नज़रों के सामने छीन-भिन्न हो रहे थे। दोनो सुबह 4 बजे तक ऐसे ही बैठे रहे फिर सोनाली को थोड़ा हौसला आया और वह जाने के लिए उठी तो अभिनव ने उसे उठने में मदद की पर दोनों के बीच कोई संवाद नहीं हुआ। दोनों खामोशी कायम रखते हुए वहाँ से निकल गए शायद दोनों ने अपनी तक़दीर को जान लिया था। यह उनकी अंतिम मुलाकात थी।
एक सप्ताह गुज़र गया था और सोनाली का कही कोई नाम निशान नहीं था। उसकी छत भी बिल्कुल सुनी थी बस एक दो बार उसकी मम्मी कपड़े सुखाने और उतारने छत पे आ जाती थी अभिनव को जो छत कभी सुंदर लगती थी इन दिनों वहीं छत उसे जरा भी नहीं भा रही थी वो अपने छज्जे के पास जाता, सोनाली के छत को एकटक देखता फिर मायूस होकर वापस नीचे आ जाता। सोनाली के मम्मी पापा और भाई तो उसे दिखते मगर सोनाली उसे कहीं दिखाई नही देती।
अभिनव बहुत परेशान था उसके मन में अजीब खयाल आया रहे थे। उसने आफिस जाना भी बंद कर दिया था, घर पर पड़े पड़े हर पल वह सिर्फ सोनाली के बारे में ही सोचता रहता था। अभिनव को यह पता चल चुका था कि सोनाली अब छत पर नहीं आ पाएगी और शायद यहीं उनके रिश्ते का भी अंत होना था। गली-मोहल्ले के इश्क़ में अगर दोनों व्यक्ति छत पे नियमित रूप से आ रहे है तो इसका मतलब रिश्ता कायम है परन्तु ज्यों ही किसी एक ने भी आना बंद कर दिया तो उसे ही उस रिश्ते का अंत मान लिया जाता है।
कई दिनों बाद अचानक एक दिन रात के करीब 1:30 बज रहे होंगे कि अभिनव के दरवाजे पे दस्तक हुई, नींद भरी आंखे लेकर जब अभिनव ने किवाड़ खोला तो उसने सोनाली को अपने दहलीज़ पर पाया। उसके हाथ में उसका सूटकेस झूल रहा था उसे देखते ही वह पूरा मामला भांप गया कि वह इतने रात को वहां क्या कर रही थी लेकिन इतने दिनों बाद सोनाली को अपने समक्ष देख वह खुद को रोक नही पाया और उसने उसे गले लगा लिया। बाद में उसे अंदर बुलाकर एक कुर्सी पर बिठाया और पूछा-
"क्या हुआ"
"देखो अभिनव अब हमारा मिलना बहुत ही मुश्किल हो चुका है, मम्मी मुझे छत पे बिल्कुल नही आने देती हैं इसी वजह से इतने दिनों से मैं छत पे नहीं आ पाई थी। मैंने उन्हें समझाया पर वह नहीं मानी।" सोनाली ने कहा।
"लेकिन यह... सूटकेस और इतनी रात को तुम यहाँ अभिनव ने पूछा। हालांकि उसे जवाब मालूम था।
"मैं यहां इतनी रात को इसलिए आई हूं ताकि हम दोनों यहाँ से दूर निकल सके, कहाँ भाग सके जहाँ हमारे प्रेम को कोई भी अपनी परिभाषा न दे सके।जहाँ सिर्फ़ तुम और मैं हो सोनाली ने कहा
अभिनव यह सुनकर सोच में पड़ गया फिर थोड़ी देर बाद बोला।
और तुम अपने मम्मी-पापा और छोटे भाई सूरज से अलग रहे पाओगी, उनका क्या होगा? कभी यह सोचा है।" अभिनव ने थोड़े से कठोर स्वर में पूछा। - "वो सब मैं नही जानती अगर वो मेरे प्यार को, मेरी खाव्हिशों को नहीं समझ सकते तो में क्यों उनकी परवाह करूं और रही बात सूरज की तो हाँ मैं उसे मिस करूंगी। सोनाली ने उत्तर दिया।
"अच्छा! पर यूं जाना ठीक नहीं गली वाले क्या सोचेंगे हमारे बारे में"
"मुझे कोई फर्क नही पड़ता और तुम ही तो कहते आये हो कि मैं गली वालों की ज्यादा ही सोचती हूं और आज तुम भी उन्हीं के बारे में सोच रहे हो - सोनाली बोली।
बात ठीक थी अभिनव हमेशा उसे गली वालों की परवाह छोड़ उसके साथ छत पे वक़्त बिताने को कहता और घूमने जाने को कहता था और आज वो ही गली वालों को लेकर चिंतित लग रहा था।
अभिनव ने थोड़ी देर सोचा फिर कहा ठीक है, चलते है यहाँ से कहीं दूर सी.सी. टी. वी. बन चुके इन लोगों के नज़रों से दूर और वह उठकर अपने कमरे में चला गया। आवेश में आकर इस तरह के कदम उठाना आज के समय में स्वभाविक प्रतिक्रिया है खासकर युवाओं की । अभिनव को इस बात का पता था और दुर्भाग्य से सोनाली भी इसी राह पर अग्रसर हो चुकी थी।
थोड़ी देर बाद जब वह लौट तो उसके भी हाथ में एक बैग था। उसने टेक्सी बुक की और दोनों रात के अंधेरे में नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के लिए रवाना हुए। टैक्सी में चढ़ते हुए जो गुस्सा सोनाली के चेहरे पे था वही गुस्सा अभिनव को टैक्सी में भी उसके चेहरे पर झलकता दिखा जैसे वह अपने परिवार से नाराज़ हो और सिर्फ उन्हें यह जताने के लिए कि वह इंडिपेंडेंट है और अपने फैसले खुद ले सकती है बताने के लिए घर से भाग रही हो। हालांकि अभिनव को यह भी मालूम था कि सोनाली उससे बेइंतहा मोहब्बत करती है फिर भी उसे उसके ये भाव अजीब लग रहे थे। ऐसे नाजुक मौकों पर अक्सर हम भूल जाते हैं कि हम कौन है, क्रोध हमारे ऊपर हावी हो जाता है। युवाओं का क्रोध और आवेश में आकर ऐसे कदम उठाना आम है।
टैक्सी में बैठे-बैठे अभिनव यही सब बातें सोच रहा था और कहीं न कहीं उसे यह सब गलत लग रहा था। वह एक ऑफिस में छोटे औधे का मुलाज़िम था और गांव में उसके माँ- बाबूजी के कुछ अरमान थे जो उसे अभी पूरे करने थे, साथ ही उसे सोनाली के घरवालों की चिंताएं भी सता रही थी उसे इस बात का भी ज्ञान था कि गली के लोग उनका जीना दूभर कर देंगे और उनपे थू-थू करने का मौका नही गवाएंगे। यह सभी बातें उसे अंदर से खाये जा रह थी और जैसे-जैसे स्टेशन क़रीब आ रहा था उसे और अधिक डर लगने लगा।
अभिनव अपने दिमाग के घोड़े दौड़ाने लगा उसके बाबूजी हमेशा उससे कहते थे कि अगर कहीं फसने की जगह होती है तो बेटा निकलने की भी जरूर होती है, अभिनव को भी एक राह मिल गई थी इन सब चीजों से निकलने की सुबह 4 बज रहे थे, जैसे ही वे स्टेशन पहुँचे। वह सोनाली को लेकर टैक्सी से उतरा। उसके दिमाग में एक प्लान था और वह सोनाली का हाथ पकड़कर स्टेशन की ओर बढ़ा और.....
(3 घंटे बाद)
सोनाली की जब आँखें खुली तो वह किसी होटल के कमरे के बेड पे लेटी थी और उसके माता-पिता सामने एक सोफे पे बैठे उसे देख रहे थे। अभिनव उसे कहीं न दिखा भय और चिंता के मारे यह अचानक उठी मानों उसके अंदर बिजली कौंध गयी हो।
मम्मी, पापा आप यहाँ क... क. कैसे और अभी.. नव, अभिनव कहाँ है?" सोनाली ने हिम्मत करके पूछा।
"मैं यहीं हूँ"
एक जानी पहचानी आवाज़ उसको अपने बेड के बाएं तरफ से सुनाई दी, उसने उस तरफ देखा तो अभिनव बगल में ही बैठा था।
"अभी अभिनय तुम भी यहाँ हो मगर कैसे? ओह! मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा और हम तो भागने वाले थे। यह सब क्या हो रहा है।" सोनाली हैरान होकर बोली
पहले तुम शांत होकर बैठो फिर मैं तुम्हें पूरा मामला समझाता हूँ कि यहाँ क्या हो रहा है।"
सोनाली शांत होकर बेड पर बैठ गयी और अभिनव ने उसकी तरफ पानी का ग्लास बढ़ाया जिसके सोनाली ने दो घूंट लेकर बेड के बगल वाले मेज पर रख दिया।
"अब बताओ मेरे मम्मी पापा यहाँ क्या कर रहे है?"
Don't worry , उनको मैंने ही यहाँ फोन करके बुलाया है।"
" तुमने ..... पर क्यों "
"यही तो बताने जा रहा हूँ अंकल-आंटी आप भी सुनिए।"
जैसा कि तुम्हें मालूम है और अंकल आंटी आपको भी, मैं सोनाली के जागने से पहले बता चुका हूँ कि सोनाली और में प्रेम के बंधन में बहुत पहले ही बंध गए थे और अपने भविष्य के बारे में सोच रहे थे परंतु आप लोगों द्वारा अचानक शादी के दवाब को सोनाली सह नहीं पाई उसने आप लोगो को समझने की कोशिनों भी की लेकिन आप नहीं माने तो वह अंदर से टूट गयी और धीरे-धीरे आप लोगों को वह अपने प्यार का दुश्मन मानने लगी और कल रात 1:30 बजे वह मेरे साथ भागने के लिये मेरे दरवाजे पे थी और सच बताऊं तो एक पल के लिए मैंने भी सोचा कि भाग चलू इसके साथ पर जिस दुनिया के सपने सोनाली और मैंने साथ में देखे थे यह उससे बिल्कुल अलग था जिसमें स्वार्थ और क्रोध जैसी भावनाओं का वास था जो मैं अपने पवित्र रिश्ते में कभी नहीं चाहता था और सोनाली तुम्हारे चेहरे पर भी मैंने वही स्वार्थ और बगावत की भावना झलकते देखी, यह कोई और सोनाली थी वो नहीं जिसे मैं जानता हूँ। कई रिश्तों को ताक पर रखकर रिश्ते बनना मेरे व्यक्तित्व का हिस्सा नहीं है। प्रेम किसी का ह्रदय दुखाना नहीं सिखाता इसलिए जब हम स्टेशन पहुँचने वाले तब मैंने यह प्लान बनाया स्टेशन पहुँचने के बाद मेरे लिए सबसे बड़ी चुनौती थी सोनाली के भाग चलने के गलत खयाल की किसी तरह रोकना इसलिए मैंने सोनाली को समझाया कि अभी भागना ठीक नहीं क्योंकि उसके मम्मी-पापा सबसे पहले हमें स्टेशन पर ही ढूंढने आएंगे और भगवान की कृपा से सोनाली मेरी बात मान गयी फिर मैंने उसे कहा कि हमें कुछ घण्टों के लिए किसी ऐसी जगह जाना होगा जहां हम कुछ देर छिप सके और फिर मैं सोनाली को इस होटल में ले आया और शुक्र है कि इसको मेरे प्लान की जरा भी भनक नहीं हुई और फिर सोनाली को सुलाने के बाद मैंने फोन करके आप लोगों को यहाँ बुला लिया।
अभिनव की बातें सुनकर उन तीनों के मुँह खुले रह गए।
"पर तुमने ऐसा क्यों किया, जबकि तुम्हें तो पता होगा कि हम तुम्हे अलग करने की कोशिश करेंगे।" सोनाली के पापा ने आश्चर्य से पूछा।
" देखिए अंकल जी में सोनाली से प्यार करता हूँ इसमें कोई शक नहीं मगर साथ ही में यह भी जानता हूँ कि आप लोग सोनाली से कितना प्रेम करते है और अपने प्रेम को पाने के लिए में आपका प्रेम जो सोनाली के प्रति है उसका गला नहीं घोंट सकता। मैं खुद सोनाली के लिए अपने माँ-बाबूजी को नहीं छोड़ सकता ठीक इसी तरह में सोनाली को ऐसा करने नहीं दे सकता।
प्रेम का मतलब यह नही की हम सिर्फ अपनी सोंचे बल्कि दूसरों की भावनाओं का क़दर करना भी प्रेम का ही एक रूप है और साथ ही यह भी सच है कि जो अपने माँ-बाप को छोड़ सकता है वो किसी को भी छोड़ सकता है। इसलिए मैंने यह सब किया।अभिनव की बातें सुन तीनों के आंखों में आंसू आ गए, सोनाली की माँ उठी और उन्होंने अभिनव को गले से लगा लिया।
"बेटा तुम तो बहुत समझदार निकले, तुमने बहुत अच्छा किया बेटा।"
"आंटी जी, यह तो मुझे करना ही था"
सोनाली भी अभिनव को गले लगाने के लिए बेसब्र थी मगर मम्मी-पापा के आगे वह ऐसा नहीं कर सकी।
"मम्मी-पापा मुझे भी माफ कर दो, मैंने बहुत गलत किया। पता नहीं में क्या सोच रही थी।" सोनाली बोली
"कोई नही बेटा, अब वो सब बातें छोड़ो" उन्होंने कहा।
कुछ घण्टों बाद चारों एक-दूसरे का हाथ पकड़ कर होटल से निकले और घर आये जहाँ सोनाली के मम्मी-पापा ने अभिनव और सोनाली की आरती उतारी और उनसे खूब बातें की।
(2 साल बाद)
अभिनव अपने छत पे खड़ा था। जिस घर में अभिनव किराये पर रहता था वही घर उसने अब खरीद लिया था। अचानक सोनाली के छत पर किसी के आने की आवाज़ हुई, अभिनव मुड़ा और देखा वह सोनाली थी। काले रंग की साड़ी में उसका गोरा रंग निखर के आ रहा था। उसके खुले बाल हवा संग लहरा रहे थे और वो अपना आँचल संभालते हुए आगे बढ़ रही थी। उसने अभिनव की तरफ देखा और मुस्कुराई, वह एकटक सोनाली को देख रहा था उसकी आंखे सोनाली के गुलाबी होंठ, माथे मे काली बिंदी और कानों के झुमके से हट ही नही रही थी तभी उसकी नज़र सोनाली के कलाइयों पर गयी। उसकी कलाई लाल चूड़ी और कगंन से भरी थी, अभिनव भागकर जाकर उसके हाथों को चूमना चाहता था। सोनाली किसी नई नवेली दुल्हन की तरह लग रही थी और लगे भी क्यों न वो अभी नई नवेली दुल्हन ही तो थी, अभिनव से उसकी शादी को सिर्फ एक महीना ही हुआ था। सोनाली ने शादी से पहले अपना ग्रेजुएशन भी कर लिया था। हाँ, दोनों की अब शादी हो चुकी थी लेकिन आज भी दोनों को कभी-कभी पुराने दिनों की तरह यूं छज्जे से मिलना, एक दूसरे को देखना अच्छा लगता था आखिर यहीं छत उनके प्यारी की निशानी थी और उन्हें मिलवाने की कड़ी भी ।
"तेरे दर पे सनम चले आये, तू न आया तो हम चले आये..... छत पर रखे रेडियो पर एक बार फिर यह गाना बजने लगा। सोनाली अभिनव को देखकर मुस्कुराई और उसने रेडियो की आवाज़ बढ़ा दी। उनका छज्जे वाला प्यार अभी भी बरकरार था।
लेखक (आकाश छेत्री)
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ReplyDeleteShukriya aapka isse padhane ke liye. Apna naam aur likh dete toh accha hota.
Deleteछोटी, भावनात्मक और सुंदर कहानी जिसे बिल्कुल फिल्मी अंदाज़ में गढ़ा गया है। बहुत अच्छा काम भाई 🥂
ReplyDeleteदिल से शुक्रिया भाई समय निकालकर पढ़ने के लिए।❤️🦋🌺🙏
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