शिमला स्टोरी
शिमला के मॉल रॉड पर कुछ अच्छा लिख पाने की तलाश में, मैं युहीं भटक रहा था। लोगों की आवाजाही और उनका शोर शिमला के पहाड़ों में गूंज रहा था।
लोगों के चेहरों के बदलते हाव भावों को पन्नों पे दर्ज करने की चाह में, मैं लोगों में कहानी खोजने लगा।
तभी एक नव विवाहित जोड़ा हाथों में हाथ डाले मुझे आगे बढ़ता दिखा। जैसे ही वो मेरे पास से गुज़रे मुझे अपने आंखों के सामने पूरा शिमला गुलाबी नज़र आने लगा, सब कुछ गुलाबी यहां तक कि मॉल रोड का सफेद चर्च भी और अचानक कहीं से मुझे गुलाब की ख़ुशबू भी आने लगी, खुशबू इतनी तेज थी कि मुझे लगा कि वो खुशबू मेरे ही भीतर से आ रही है। मेरी आँखें उन दोनों पर जम गई हालांकि वहां भीड़ थी मगर मेरी निगाहें उन के साथ-साथ चलने लगी। वो आपस में कुछ बातें करते हुए मुस्कुरा रहे थे, मेरे अंदर का लेखक जानना चाहता था वो किस बात पर हँस रहे है। मैं उन्हें देखता रहा और कब उन्हें लिखने लगा मुझे पता भी नही चला, थोड़ी देर बाद मैंने खुद को भी मुस्कुराते हुए पाया। लड़का कुछ कहता जिसपे लड़की ख़ुश हो जाती, इस लम्हें में वह खुश थी और वो इन्हें कैद कर लेना चाहती थी इसलिए बीच-बीच में वह अपना फोन निकाल कर दोनों की तस्वीर भी खींच लेती। मैं सोचने लगा कि जिस प्रेम का जिक्र किताबों में होता है क्या वो ऐसा ही होता है, क्या जो शाम एक प्रेमी जोड़े के बीच घटित होता है वो ऐसा ही दिखता है। मुझे ऐसा भी लगने लगा कि जैसे में इस जोड़े को जानता हूँ, क्या मैं उस लड़के को जनता हूँ या उस लड़की को, मैं ठीक से नही कह सकता क्योंकि मैं उनमें किसी उपन्यास के पात्र देख रहा था। गुलाब की गंध और भी तेज हो रही थी। मैं उन दोनों प्रेमियों के बारे में सब कुछ लिख लेना चाहता था परंतु मेरा एक हिस्सा जो लेखक नही है इसकी इजाजत मुझे नही दे रहा था वो मेरा हाथ रोक रहा था और कानों में कह रहा था कि लिखो मत यह तुम्हारी कहानी नही है, बस देखों और भूल जाओ, वो दोनों साथ है और तुम अकेले। अगर तुम उनको लिख लोगे तो तुम उनको कभी भूल नही पाओगे। यह उनका पल है उसमें तुम अपना हिस्सा मत ढूढों, बस करों कलम चलाना बन्द करो। तुम चोर हो, घुसपैठिये हो, लिखना बन्द करो यह सारे वाक्य मेरे कानों में गूँजने लगे। मैंने उन्हें न लिखने का निर्णय लिया सो मैंने नोटबुक बन्द कि और उसे पेन के साथ अपने बैग में ठूंस दिया, और उन दोनों जोड़ों को देखने लगा अब गुलाब की खुशबू भी आनी कम हो गयी थी। मैंने घण्टों बैठकर उनको देखा, उनके प्रेम को देखा और तय किया कि इसे कभी नही लिखूंगा। मैं एक और कहानी को अपने लिखे से दूषित नही करूँगा, मैं इस कहानी को जाने दूंगा। पर मन मैं यह भी सवाल उठ रहे थे कि इन दोनों को लिखकर मैं इन्हें अपने पास संजो सकता हूँ। अचानक उन दोनों की नज़र मुझ पे पड़ी, मैंने अपनी आँखें चुरा ली, मुझे डर लगने लगा कि कहीं उन्हें पता तो नही लग गया कि मैं उन्हें लिखने की कोशिश कर रहा हूँ वो मुझे देखे जा रहे थे और मैं नज़रे नीचे कर अपने जूते को देख रहा था। मैं जब ऐसी अजीब स्थिति में होता हूँ तो अपने जूते देखने लगता हूँ यह मेरी पुरानी आदत है। हालांकि वहाँ काफी ठंड थी फिर भी मुझे मेरे माथे पर पसीने की बूंदे महसूस होने लगीं। मेरे पैर कांप रहे थे, मुझे आत्म ग्लानि होने लगी। थोड़ी देर बाद उन्होंने मुझसे अपनी नज़रे हटाई और आगे बढ़ गए और मैंने एक गहरी सांस ली।
सारा मॉल रोड वापस अपने रंग में आ गया था, मॉल रोड का वो चर्च अब ग़ुलाबी नही रह गया था अब वो सफ़ेद पड़ चुका था निर्जीव सा। हवा में अब कोई गंध नही आ रही थी, सब कुछ निर्थक मालूम पड़ रहा था, सब कुछ उबा देने वाला था, सारे लोग अनजान प्रतीत हो रहे हे । मेरे लिए अब यहाँ कुछ नही था सो मैंने अपना बस्ता उठाया और वहाँ से चल दिया।
परन्तु जब मैंने होटल वापस आके अपनी डायरी खोली तो देखा कुछ समय जो हुआ, जो मैंने देखा वो सब कुछ लिखा हुआ था, मैंने डायरी उठायी और उसे पढ़ने लगा मेरे चेहरे पर एक मुस्कान फुट आयी मगर एक ग्लानि के साथ। मैं उन दोनों को लिख चुका था। मैं एक बार फिर मैं चोर बन चुका था।
- लेखक ( आकाश छेत्री)
ख़ूबसूरती से लिखा गया, यथार्थ है ये, लेखक कब किसके जिए हुए से कुछ क्षण चुरा कर अपने लिखे में शामिल कर ले, ये सही-सही कह पाना थोड़ा मुश्किल है।लेखकों के अंदर सैकड़ों किरदार हरकत कर रहे होते हैं, उनमें से आप एक समय पर किस किरदार से मिल रहे हो ये आप हाथ रखकर नहीं कह सकते। मुझे लगता है ऐसा कर पाना एक समय पर लेखक की चालाकी नहीं मजबूरी होजाती है जब आपको अपनी वास्तविकता से परे जाकर वो जीने का एक मौका मिलता है जिसमें आप वो बन पाते हो जो आप हमेशा से बनना चाहते थे या कभी बन नहीं पाए। लेखन अद्भुत है!
ReplyDeleteदिल से शुक्रिया भाई। हर लेखक ऐसे पाठक मित्र के फीडबैक के लिए आतुर रहता है जो उनके लिखे को पढ़े समझे और अपने विचार व्यक्त कर सके। ठीक वैसे ही मुझे आजकल आपके कमेंट का इंतज़ार रहता है क्योंकि आप स्वयं लिखते हो और आपको लेखन की जटिलताओं का ज्ञान भी है और आप लेखन के बहुत करीब हैम। आशा करता हूँ, आपका साथ यहीं मुझसे और मेरे लिखे से बना रहेगा।❤️🌺🙏🦋
ReplyDeleteसुंदर लेख था पार्थ, खूब लिखो
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका पढने के लिए l खूब प्रेम आपको
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